चाय पर ©विपिन बहार
बारिशो में तुम मिली थी चाय पर ।
बादलों में तुम खिली थी चाय पर ।।
वक्त का मानो पता ही ना चला...
बात यारो यूँ चली थी चाय पर ।।
हम अकेले ही अकेले रह गए ।
याद तेरी मखमली थी चाय पर ।।
प्यार का दीपक बुझा तुम चल दिए..
आरजू की लौ जली थी चाय पर ।।
दो नयन मिलते रहे यूँ मिल गए ।
मनचला था ,मनचली थी चाय पर ।।
भीड़ सब तुमको निहारे दिलरुबा ।
यार कितनी खलबली थी चाय पर ।।
© विपिन"बहार"
आभार भाई जी💐💐💐👏👏
जवाब देंहटाएंबेहद उम्दा ग़ज़ल👏
जवाब देंहटाएंबेहतरीन
जवाब देंहटाएंधन्यवाद मैंम💐
हटाएंवाहहहहह
जवाब देंहटाएंधन्यवाद मैंम💐
हटाएंवाहहह बहुत खूब लिखा भाई जी।, 🙏
जवाब देंहटाएंधन्यवाद भाई जी💐
हटाएंवाह क्या बात है बेहद खूबसूरत 💐
जवाब देंहटाएंजी धन्यवाद मैंम💐
हटाएंअत्यधिक अद्भुत भैया....👏
जवाब देंहटाएंधन्यवाद भाई जी💐
हटाएंBahut sundar Bhaiya ji 🙏
जवाब देंहटाएंधन्यवाद भाई💐
हटाएंवाह्ह्हह्ह्ह्ह खूब 💐
जवाब देंहटाएंबहुत-बहुत आभार सर👏👏
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