लेखनी स्थापना दिवस प्रतियोगिता परिणाम

सभी को सादर नमस्कार।
जैसा कि आप सभी को ज्ञात है, लेखनी स्थापना दिवस 2024 के उपलक्ष्य में लेखनी परिवार द्वारा कविता/गीत/गद्य प्रतियोगिता एवं ग़ज़ल प्रतियोगिता का आयोजन करवाया गया था। प्रतियोगिता में हमें अत्यंत उत्कृष्ट गीत, गद्य, कविता एवं ग़ज़ल पढ़ने को मिली। निश्चित ही पढ़कर साहित्यिक हृदय प्रसन्न हो उठा। इन रत्नों में से कुछ रचनाओं का चयन कर पाना सागर में रत्न खोजने के समान कठिन था, किन्तु नियमानुसार चयन अनिवार्य था।
सभी रचनाकारों को भविष्य के लिए गगन भर शुभकामनाएं। लेखनी परिवार आगे भी ऐसी साहित्यिक गतिविधियां आयोजित करवाता रहेगा, जिसमें आपकी सहभागिता अपेक्षित रहेगी।
सभी विजेता रचनाकारों को हृदयतल से बधाई, शुभकामनाएं। ✨✨🎉🎊


 विजेता रचनाकार एवं उनकी रचनाएँ:-

कविता/गीत/गद्य प्रतियोगिता:-

 1. आ० सुविधा पंडित जी

विधा - गीत 
विधान - सरसी /कबीर छन्द आधारित ( 16, 11 मात्रा, पदांत - 21 )
विषय - शब्दों का सावन 

आज हृदय संतृप्त हुआ है, भीग मधुर रसधार।
सावन की बूँदों -सी बरसे, भव्य भाव -बौछार।।

सघन भाव की मेघावलियाँ, छायीं हृदय -प्रदेश।
झरते छन्द गीत प्रियकारी, कलम रचे परिवेश।।
शब्दों का सावन मदमाता, स्वप्न करे विस्तार।
सावन की बूँदों -सी बरसे, भव्य भाव -बौछार।।

बरखा में मुखरित हो जाती, और हृदय की प्रीत।
बूँद -बूँद पर रच जाते हैं, चहुँ दिश भीगे गीत।।
उमड़ उठा शब्दों का सावन, उफने हिय - उद्गार।
सावन की बूँदों -सी बरसे, भव्य भाव -बौछार।।

कजरी चैता बारामासी, सावन के प्रतिमान।
शब्दों ने ही बिखरायी है, सौम्य सुखद सी तान।।
मनः पटल पर  मिलन क्षणों को , देते  शब्द उभार।
सावन की बूँदों -सी बरसे, भव्य भाव बौछार।।

शब्द रचित करते पन्नों पर, विकल हृदय की पीर।
शब्द -शब्द से विरह प्रसारित, देती हिय को चीर।।
शब्दों की बरसातों का है, उर -तल से आभार।
सावन की बूँदों -सी बरसे, भव्य -भाव बौछार।।

शब्दों से ही बिजली गिरती, शब्दों से घन - नाद।
पुलकित मोर -नृत्य शब्दों में, पिक मधुरिम उन्माद।।
शब्द बनें उज्ज्वल उद्दीपक, आँसू का आधार।
सावन की बूँदों -सी बरसे, भव्य भाव -बौछार।।

सौम्य शब्द संचारित जब भी, मलय पवन आभास।
शब्द -कलश की बूँदें पावन,सुरभित शब्द-सुवास।।
शब्द तूलिका से झर- झर कर, करते जग निस्तार।
सावन की बूँदों -सी पावन, भव्य भाव-बौछार।।

शब्दों के ही मध्य विचर कर, होता रस -उद्रेक।
शब्द अलंकृत करते वाणी, भावों का अभिषेक।।
शब्द बिना सूना है सावन, जीवन है निःसार।
सावन की बूँदों -सी बरसे, भव्य भाव -बौछार।।

मेरे शब्दों बरसाना तुम, निर्धन का सम्मान।
शीतल तुहिन कणों -सा बरसो, हलधर का बन धान।।
कविता सदा व्यथा में जलती,अब सावन अभिसार।
सावन की बूँदों -सी बरसे, भव्य भाव -बौछार।।
© सुविधा पण्डित
अहमदाबाद (गुजरात)

 2. आ० कामना पाण्डेय जी

विधा-------गीत
मात्रा भार----16,14
शब्दों का सावन

रंग  बिरंगी  हुई धरा अब,इठलाई हर डाली है |
जाने किसने रंग भरा है,कौन धरा का माली है ||

हरी चुनरियाँ ओढ़े धरती,श्रृंगारित है फूलों से |
सघन वृक्ष की पुष्पित डाली,चहक रही है झूलों से |
कुहू-कुहू की तान छेड़ती,कोयल यह मतवाली है |
जाने किसने रंग भरा है,कौन धरा का माली है ||1||

कीट पतंगें लगे दौड़ने,फूलों की रस प्यास लिए |
जैसे कोई उत्सव आया,धरती पर मधुमास लिए |
सुप्त बीज ने जल बूँदों से,मन मंशा कह डाली है |   
जाने किसने रंग भरा है,कौन धरा का माली है ||2||

बौराए से ताल तलैया,नदियाँ है बल खाई सी |
तप्त धरा की प्यास बुझाने,मौसम ले अंँगड़ाई सी |
भोर भए पूरब में देखो,छाई कैसी लाली है |
जाने किसने रंग भरा है,कौन धरा का माली है ||3||

शब्दों के सावन ने देखो,कैसा जादू डाला है |
शब्द भाव से गूँथी मैंने,सुखद प्रेम की माला है ||
सदा पूर्णता देना ईश्वर,महिमा बड़ी निराली है |
जाने किसने रंग भरा है, कौन धरा का माली है ||4||
©कामना पांडेय 
बिलासपुर (छत्तीसगढ़)



 3. आ० रश्मि शुक्ल "किरण" जी

शब्दों का सावन
गीत
16,15 पर यति।

कभी कभी तन्हाई लिखती,कभी तुम्हें मैं लिखती मीत।
निज भावों की माला ले कर,शब्द सुमन से लिखती गीत।।

मन की बगिया से मैं तोडूँ,रोज नए शब्दों के फूल।
रोज बुहारूँ मन का आंँगन,जमी अहं की मैली धूल।।
निज अनुभव को अपने लिखती,देती भावों को मैं रूप।
कभी लिखूंँ मैं ठंडी छाया,कभी लिखूँ जीवन की धूप।।
रची बसी है मांँ की ममता,सच्ची मांँ की लिखती  प्रीत।
निज भावों की माला ले कर,शब्द सुमन से लिखती गीत।।1।

जीवन की सतरंगी बगिया,लिखती हूँ इसके किरदार।
कोई दे जाते हैं ठोकर,कोई लगते हैं उपहार।।
दीन दुखी की लिखती पीड़ा,कैसे हो इनका उत्थान?
खुशियांँ खेलें आंँगन आँगन,सारे जन हों एक समान।।
मुश्किल राहों में जो आती,झट लेती साहस से जीत।
निज भावों की माला ले कर,शब्द सुमन से लिखती गीत।।2।

शब्दों का सावन उमड़ा है,मन में उठने लगी हिलोर।
कोयल कूके डाली डाली, नाच रहा मेरा मन मोर।।
लिखूंँ गीत मैं कविता मुक्तक,गजलों से है मुझको प्यार।
कभी लिखूंँ श्रंगार हास्य मैं,देती कभी कलम को धार।।
सदियों से जो चलती आई,'किरण' सयानी लिखती रीत।
निज भावों की माला ले कर,शब्द सुमन से लिखती गीत।।3।

©रश्मि शुक्ल 'किरण'


 विशिष्ट:-

क) आ० सुमन ओमानिया "तरंगिणी" जी

प्रदत्त विषय - शब्दों का सावन
विधा -दोहा छंदाधारित गीत
विधान -दोहा एक मात्रिक छंद है. इसमें चार चरण होते हैं ।
दोहा के पहले और तीसरे चरण में 13-13 मात्राएं होती हैं, जबकि दूसरे और चौथे चरण में 11-11 मात्राएं होती हैं ।
दोहा के पहले चरण को विषम चरण और दूसरे चरण को सम चरण कहते हैं. 
दूसरे और चौथे चरण यानी सम चरणों का समतुकान्त होना ज़रूरी है. 
सम चरणों के अंत में गुरु लघु होना चाहिए ।


शब्दों का सावन भला, रिमझिम झरते भाव ।
भीगी-भीगी कल्पना, कविवर लिखते चाव ॥

मन की कोमल भावना, खिलने लगे कपोल ।
बूँद-बूँद ऐसे झरें, जैसे हिय के बोल ।
अंलकार आकाश भर, सुंदर सजती नाव ।
भीगीं- भीगीं कल्पना, कविवर लिखते चाव ।

बोल अधूरे ही रहें, मन के भीतर भींच ।
हाथ लेखनी थाम कर, रही शब्द को सींच ॥
अभि-व्यंजन की ताड़ना, देती गहरे घाव ।
भीगी - भीगी कल्पना, कविवर लिखते चाव ॥

पावस में लगती झड़ी, देती ज्ञान पुनीत । 
सरगम रखती अंक में, बरसी बन मन मीत ।
सुर संगम की साधना, बरखा में दे ताव ।
भीगी- भीगी कल्पना, कविवर लिखते चाव ॥

शब्दों का सावन भला, रिमझिम झरते भाव ।
भीगी-भीगी कल्पना, कविवर लिखते चाव ॥

©सुमन ओमानिया "तरंगिणी"
नई दिल्ली


ख) आ० मधु झुनझुनवाला "अमृता" जी

नमन माँ शारदे 
विषय - शब्दों का सावन 
विधान - सरसी छंद 

(सरसी छंद में चार चरण और 2 पद होते हैं । इसके विषम चरणों में 16-16 मात्राएँ ( चौपाई की तरह) और सम चरणों में 11-11 मात्राएं होती हैं । ( दोहे के सम चरण की तरह ) । इस प्रकार #सरसी छंद में 27 मात्राओं के 2 पद होते हैं ।)


शब्दों का जो बरसा सावन, उमड़े भाव अनेक ।
अक्षर गिरते मन आँगन पर, करते नाद हरेक ।।

विकल वेदना कभी मिलन के, रच दे काव्य अनूप ।
मृदुल हृदय के मोती छलके, देख तपाती धूप ।।

इन्द्रधनुष  से  रंग सजाये, निखरे शून्य वितान ।
हो आलोकित अरुणिम आभा, कवि का बढ़ता मान।।

नवरस की मधु प्याली भरते, हास-रुदन अरु नेह ।
रौद्र-वीर  शृंगार करुण रस, शृंगारित हो गेह ।।

शब्दों से संगीत मधुर है, शब्द गढ़े हैं गीत ।
साज सजे अनुपम शब्दों से,बनें शब्द मनमीत ।।

कर उर में झंकार निरन्तर, नीरव पन्नों में शोर ।
कुसुमित करते मृदु भावों को, नृत्य करें मन मोर ।।

पान करे जब अक्षर कणिका, चातक होता तृप्त।
शांत क्षुधा होती काव्य की, अंत तृषा का दृप्त ।।

©मधु झुनझुनवाला "अमृता"
जयपुर (राजस्थान)



 ग़ज़ल प्रतियोगिता:-


 1. आ० वैभव कुमार मिश्र जी

मुसव्विर बन सुख़नवर रोज़ इक चेहरा बनाता है। 
कि जिसके पास हो ताकत वो फिर पहरा बनाता है।

मेरे हमदर्द हमराही मुझे ये रोज़ कहते हैं,
ज़रा से ज़ख्म को तू खोद कर गहरा बनाता है।

ये आदम है इसे ऊंचे घरानों से है क्या लेना,
जहां भी बैठ जाता है वहां सहरा बनाता है।

कि जबसे इस सुख़नवर को लगी है सुस्तपन की लत,
ये तस्वीरों तलक में वक्त को ठहरा बनाता है।

ख़ुदा ने सबको दो दो कान देकर ही बनाया था,
ये दौलत का नशा है, सबको जो बहरा बनाता है।
© वैभव कुमार मिश्र
आत्मा राम सनातन धर्म महाविद्यालय ,दक्षिण परिसर, दिल्ली विश्वविद्यालय



 2. आ० जितेंद्र नाथ श्रीवास्तव "जीत " जी

1222      1222      1222     1222

मुसव्विर बन सुख़नवर रोज़ इक चेहरा बनाता है 
तमाशा बन के वो जोकर यहाँ हर पल दिखाता है 

चरागों की हिफाज़त में रहें फ़ानूस वो बन के 
अगर हो तीरगी उम्मीद का दीपक जलाता है

नज़ारा है कहाँ ऐसा कहाँ शीरीन ये बोली 
शजर की शाख पर वो बैठ कर के गीत गाता है

सितारे भी इशारे पर उसी के है चला करते 
है डोरी हाथ में उसके वही सबको नचाता है

तुम्हें वो चाहता है जान से ज़्यादा यकीं कर लो 
तुम्हारी ज़ुल्फ में हाथों से वो गजरा सजाता है 

सुनो संसार है मेला यहाँ सुख दुख मिला करते 
रचाता खेल वो सारा हँसाता और रुलाता है 

वहीं बन काल रौंदेगा ये मिट्टी पाँव के नीचे 
उठा के हाथ से माटी हसीं मूरत बनाता है 

सहारा साँस का देता दिलों को देता है धड़कन 
चलाता चाक हाथों से घड़ा अहसन बनाता है 

ग़ुमाँ बेकार करते हो कहाँ कुछ हाथ में तेरे 
बनाता हाथ से मूरत बनाकर के मिटाता है 

©जितेंद नाथ श्रीवास्तव "जीत "



 3. क) आ० अर्चना शुक्ला "अभिधा" जी

मुसव्विर बन सुख़नवर रोज़ इक चेहरा बनाता है।
तसब्बुर में फ़िज़ा रंगी त'अल्लुक़ रख सजाता है।।

कभी जुल्मत कभी अस्मत कभी राह ए गुजर सुर्खी,
लिए जज्बात चिंगारी कलम मश'अल जलाता है।।

मिली शाम ओ सहर पे बेकसी उसकी रकीबी जब,
तबस्सुम लब तरन्नुम से गम ए ग़ुर्बत छिपाता है।।

सुपुर्द ए खाक़ हो जाना तो रंज ओ गम नहीं करना,
वतन मिट्टी लिपटकर फर्ज़ हर बेटा निभाता है।।

न धन दौलत महल कोठी न काया साथ जायेगी,
यहाँ जो शख़्स जन्नत चाहता नेकी कमाता है।।

न मिल पाए जमीं दो गज ख़ुदा मंजर दिखाए जब,
अहं मत पालकर बैठो कफ़न इक सा ही आता है।।

चुनावों में करें वादें निरी लफ्फाज़ बन नेता,
पहनकर झूठ का जामा भली जनता फसाता है।

हयात ए मुफ़लिसी लेकर कहाँ जाए बता "अर्चू"
कई फ़ाक़े बिताकर शख़्स क्यूं जीवन बिताता है।।

©अर्चना शुक्ला'अभिधा'
उत्तर प्रदेश


 ख) आ० रश्मि शुक्ल "किरण" जी

मिसरा - मुसव्विर बन सुख़नवर रोज़ इक चेहरा बनाता है ।
वज़्न - 1222 1222 1222 1222

बुलाकर के फ़रिश्तों को हसीं महफ़िल  सजाता है,
मुहब्बत की गज़ल उनको सलीके से सुनाता है।

सिपाही है बग़ावत का नहीं डरता क़यामत से,
उठे तूफ़ान राहों में गले हंँस कर लगाता है।

तसव्वुर में बसाकर के इबादत है किया जिसकी,
नहीं समझे हक़ीक़त वो हमें ही आज़माता है।

फलक से तोड़ कर चंदा सितारे भर ले बाहों में,
मुसव्विर बन सुख़नवर रोज़ इक चेहरा बनाता है ।

सुकूँ वो मौज़ में ढूंढे लहर को हमनशीं कह कर,
'किरण' के रू-ब-रू आ कर, ज़माना भूल जाता है।
©रश्मि शुक्ल 'किरण'

टिप्पणियाँ

  1. अत्यंत उत्कृष्ट रचनाएं, समस्त विजेताओं को शुभकामनाओं 🌸🎉🙏

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  2. समस्त विजेता बंधुओं को हार्दिक बधाई

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  3. सभी विजेता प्रतिभागियों को हार्दिक शुभकामनाएं एवं बधाई🥰🙏

    लेखनी टीम के सभी पदाधिकारियों का हार्दिक आभार व्यक्त करती हूं।🥰🙏
    मेरे दोहा गीत को विशिष्ट स्थान देकर आपने मेरी लेखनी को सार्थक कर दिया ।

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  4. सभी रचनाएँ एक से बढ़कर एक उत्तम एवं मनहर हैं 💐💐👏👏👏👏
    सभी विजातओं को हार्दिक शुभकामनाएँ 💐💐💐💐👏👏👏

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  5. दीप्ति सिंह "दीया"14 सितंबर 2024 को 3:02 pm बजे

     सभी रचनाएँ एक से बढ़कर एक उत्तम एवं मनहर हैं 💐💐👏👏👏👏
    सभी विजातओं को हार्दिक शुभकामनाएँ 💐💐💐💐👏👏👏👏

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  6. वाह सभी रचनाएँ उत्कृष्ट हैं सभी विजेताओं को अनंत शुभकामनाएं 🙏

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  7. समस्त विजेता रचनाकारों को गगन भर बधाई ,उज्ज्वल साहित्यिक भविष्य हेतु शुभकामनाएं ,l
    नमन ,लेखनी l 💐💐

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  8. गज़ल प्रतियोगिता मे चयन करके सम्मान देने हेतु "लेखनी साहित्य मंच","लेखनी परिवार" के सभी सदस्यों को सादर साधुवाद🙏 कलम को नया आयाम प्रदान करने व उत्साहवर्धन करने के लिए अनंत धन्यवाद🙏 लेखनी परिवार सदा उन्नति के पथ पर अग्रसर रहे यही कामना करती हूँ,राधेकृष्ण🙏🌸

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  9. अर्चना शुक्ला'अभिधा'14 सितंबर 2024 को 5:57 pm बजे

    समस्त रचनाऐं उत्कृष्ट है सभी को हार्दिक बधाई व शुभकामनाएं💐💐🙏

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