बाकी है ©अंजलि 'जीआ'
नमन माँ शारदे
नमन लेखनी
नाकामयाबी का मुझमें असर बाकी है,
शायद मेहनत में थोड़ी कसर बाकी है।
शानो- शौकत में है परिंदो का नया जहां,
कुछ नहीं बस एक बूढ़ा शजर बाकी है।
जाने सब आते वक्त के नक्शे बनाए इंसाँ,
ना जाने तो बस की कितनी उमर बाकी है।
गहरात से सजे हो अल्फ़ाज़ मोहब्बत के,
इश्क़ मीरा-सा पाक अब किधर बाकी है।
राहों में मेरी बुझता चिराग जल जाता है,
'जीआ' उस डमरू वाले की नज़र बाकी है।
©अंजलि 'जीआ'
बेहद उम्दा🙏
जवाब देंहटाएंबहुत शुक्रिया गुंजित 🙏✨
हटाएंकमाल की गज़ल 💐
जवाब देंहटाएंबहुत शुक्रिया मैम 🙏✨
हटाएंबहुत सुन्दर ग़ज़ल दीदी
जवाब देंहटाएंसुंदर रचना l 💐
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