इम्तिहाँ ©सुचिता
यही है इम्तिहाँ तो इब्तिदा क्या है
तुम्हीं बतलाओ अब ये माज़रा क्या है ।
दिलो में जब नहीं है क़ोई भी दूरी ……
तो बतलाओ मियाँ , ये फ़ासला क्या है ।
बहुत नख़रे हैं ज़ालिम ज़िंदगी तेरे ..
दुआ भी काम ना आई , दवा क्या है ।
लहू अश्को का दरिया बन के निकला है ..
बता मेरे खुदा तेरी रज़ा क्या है ।
अना के शाख़ पर कलियाँ मुहब्बत की ..
यूँ ही गर सूख जाये , सोचना क्या है ।
बज़ा क्या है, ख़ता क्या है , सजा क्या है
सफ़र-ए-ज़िंदगी तुझमें बचा क्या है |
©सुचिता
कमाल ग़ज़ल👌👌
जवाब देंहटाएंशुक्रिया 🙂💐
हटाएंBahut Sundar 👌👌
जवाब देंहटाएंशुक्रिया आपका 💐🙂
हटाएंबेहतरीन गज़ल 👌👌👌👏👏👏
जवाब देंहटाएंशुक्रिया 🙂❤️
हटाएंशुक्रिया 🙂❤️
हटाएंबढ़िया गजल 👌🏼👌🏼
जवाब देंहटाएंशुक्रिया 🙂💐
हटाएंबेहद खूबसूरत गज़ल👌👌👌👌
जवाब देंहटाएंशुक्रिया दी ❤️🙂
हटाएंशुक्रिया आपका 🙂💐
जवाब देंहटाएंउम्दा रचना 😍
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