इम्तिहाँ ©सुचिता

 यही  है इम्तिहाँ  तो इब्तिदा  क्या  है 

तुम्हीं  बतलाओ  अब  ये माज़रा क्या है ।


दिलो में  जब  नहीं  है  क़ोई  भी  दूरी ……

तो बतलाओ मियाँ , ये फ़ासला क्या है ।


बहुत नख़रे हैं ज़ालिम ज़िंदगी तेरे ..

दुआ भी काम ना आई , दवा क्या है ।


लहू अश्को का दरिया बन के निकला है ..

बता  मेरे  खुदा  तेरी  रज़ा  क्या  है  ।


अना के शाख़ पर कलियाँ मुहब्बत की ..

यूँ ही गर सूख जाये , सोचना क्या है । 


बज़ा क्या है, ख़ता क्या है , सजा क्या है

 सफ़र-ए-ज़िंदगी  तुझमें  बचा  क्या है |

         ©सुचिता

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