ग़ज़ल ©सुचिता

 आज शाम भी है कुछ धुँआ-धुँआ 

तेरी याद भी है यूँ रवाँ-रवाँ 


ख़ुशबू तेरी आ रही हवाओं से 

दिल को हो रहा ये क्यूँ  गुमाँ- गुमाँ 


आँखें यूँ जगी -जगी सी सोई हैं 


कोई रहता इनमें है निहाँ- निहाँ 



आज भी पयाम आया  ना   तेरा 

बुझ गया ये दिल , है बस निशाँ-निशाँ


ज़ब्त-ए-ग़म से लब की खामुशी तलक 

दिल का सौदा यूँ रहा ग़राँ- ग़राँ 


तकती रहती  आँख क्यूँ सितारों को 

तुझको अब भी कोई है गुमाँ-गुमाँ

                                         @Suchita

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