ग़ज़ल ©सुचिता
आज शाम भी है कुछ धुँआ-धुँआ
तेरी याद भी है यूँ रवाँ-रवाँ
ख़ुशबू तेरी आ रही हवाओं से
दिल को हो रहा ये क्यूँ गुमाँ- गुमाँ
आँखें यूँ जगी -जगी सी सोई हैं
कोई रहता इनमें है निहाँ- निहाँ
आज भी पयाम आया ना तेरा
बुझ गया ये दिल , है बस निशाँ-निशाँ
ज़ब्त-ए-ग़म से लब की खामुशी तलक
दिल का सौदा यूँ रहा ग़राँ- ग़राँ
तकती रहती आँख क्यूँ सितारों को
तुझको अब भी कोई है गुमाँ-गुमाँ
@Suchita
वाह बेहद खूबसूरत गजल 👌👌👌👌
जवाब देंहटाएंशुक्रिया आपका ❤️🙏🏻
हटाएंBahut umda 👌👌
जवाब देंहटाएंशुक्रिया 💐
हटाएंबहुत बेहतरीन
जवाब देंहटाएंThanks 😊
हटाएंबेहद खूबसूरत गज़ल 💕👌👌👌
जवाब देंहटाएंशुक्रिया 😊❤️
हटाएंAprateem gazal ma'am 👌👌
जवाब देंहटाएंशुक्रिया 💐💐
हटाएंबढ़िया 👏
जवाब देंहटाएंशुक्रिया 💐
हटाएंशुक्रिया आपका 💐🙏🏻
जवाब देंहटाएंबढ़िया...
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना 👌🤩
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