गीत- लेखनी परिवार

नमन, माँ शारदे

नमन, लेखनी


सूरज हर शाम जहाँ तक जा कर धरती से मिल जाता है ।

बस वही लेखनी की मंज़िल है हम को  लक्ष्य बुलाता है ।।


हैँ  युगल अष्ट विश चरण किंतु है मार्ग एक है दिशा एक, 

नयनों में विविध स्वप्न पलते सिद्धांत नेक उद्देश्य नेक ।

निःस्वार्थ परस्पर नेह बंध मन से हर मन का नाता है ।

बस वही लेखनी की मंज़िल है हमको लक्ष्य बुलाता है ।।


सागर से हैँ व्यक्तित्व किन्तु कलकल जलधारा से निर्मल, 

भर अंक चले चंचल बूँदें बहते जाते निर्झर निश्छल ।

ऐसा प्रतीत होता है ज्यों जन्मों का अपना नाता है ।

बस वही लेखनी की मंज़िल है हमको लक्ष्य बुलाता है ।।


ध्वज लिए लेखनी का पथ पर हम बिना विचारे ज़ब निकले, 

पथ  दीप्ति शिखा ने दिखलाया , रजनीश  सुदृढ स्तम्भ मिले ।

संजय  जी और परम जी का संबल उत्साह बढ़ाता है ।

बस वही लेखनी की मंज़िल है हमको लक्ष्य बुलाता है ।।


शिवि कोमल मन, रिंकी चंदन, अंजलि संप्रीति खिले उपवन,

रेखा सरोज संपदा  ओज हैं अंशुमान अनमोल रतन ।

उत्साह गजल का देख लेखनी का चेहरा खिल जाता है ।

बस वही लेखनी की मंज़िल है, हमको लक्ष्य बुलाता है ।।


सौम्या की मधुर सुधा वाणी ,चुलबुल कलरव चिड़िया रानी,

लेखनी लाल गुंजित गुलाल, कविता तुषार की अनजानी ।

प्रिय लाल लेखनी के ...लेखन नूतन आयाम बनाता है।

बस वही लेखनी की मंज़िल है हमको लक्ष्य बुलाता है ।।


धीरज कुलदीप अजय अलका, क्या कहना इन कवि वृंदों का,

सूर्यम अखंड कविता  प्रचंड मृदु भाव ऋषभ के छंदों का ।

क्या बात सभी के लेखन की जो रोम रोम हर्षाता है ।

बस वही लेखनी की मंज़िल है हमको लक्ष्य बुलाता है ।।


नित मधुर लवी की कविता से महकी महकी फुलवारी है ।

रजनी इस महकी बगिया की सुंदर सी राज कुमारी है ।

सुंदर छवि देख लेखनी की गौरव से मन भर आता है ।

बस वही लेखनी की मंज़िल है हमको लक्ष्य बुलाता है ।।


वट वृक्ष लेखनी के पावन व्यक्तित्व पूज्य संजीव सरल,

विश्वास अटल, नमनीय पटल, आधार स्वयं आचार सुजल।

जिनके निश्छल हिय भाव देख कण-कण नित शीश झुकाता है।

बस वही लेखनी की मंज़िल है हमको लक्ष्य बुलाता है ।।

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