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समय-सिंधु ©अंशुमान मिश्र

जब जब साज समय का बदला, बदली जग आवाज़, समय-सिंधु में समा गए, कितने ही सभ्य समाज! कभी कभी नर अहंकार वश, बन जाता भगवान, पीड़ा पहुंचाता प्राणी को, नित करता अपमान! अपने आगे और किसी की, एक नहीं सुनता, बन स्वतंत्र स्वच्छंदाचारी, घृणित मार्ग चुनता! अहंकार मद लेकर डूबा, रावण वंश जहाज! समय-सिंधु में समा गए, कितने ही सभ्य समाज! बड़े-बड़े ज्ञानी विज्ञानी, अर्जुन सदृश धनुर्धर, नेपोलिन, सिकंदर, हिटलर, कंस और दशकंधर, इस धरती पर पैदा होने वाला, कौन न भटका? कौन शक्तिशाली है जिसको, नहीं काल ने पटका? समयाधीन सदैव यहां सब, समय सदा सरताज, समय-सिंधु में समा गए, कितने ही सभ्य समाज! पल भर में विश्वास बदलता, हर मनुष्य का आज, समय-सिंधु में समा गए, कितने ही सभ्य समाज!                             - अंशुमान मिश्र "मान" ________________________________

लेखनी स्थापना दिवस प्रतियोगिता परिणाम

सभी को सादर नमस्कार। जैसा कि आप सभी को ज्ञात है, लेखनी स्थापना दिवस 2024 के उपलक्ष्य में लेखनी परिवार द्वारा कविता/गीत/गद्य प्रतियोगिता एवं ग़ज़ल प्रतियोगिता का आयोजन करवाया गया था। प्रतियोगिता में हमें अत्यंत उत्कृष्ट गीत, गद्य, कविता एवं ग़ज़ल पढ़ने को मिली। निश्चित ही पढ़कर साहित्यिक हृदय प्रसन्न हो उठा। इन रत्नों में से कुछ रचनाओं का चयन कर पाना सागर में रत्न खोजने के समान कठिन था, किन्तु नियमानुसार चयन अनिवार्य था। सभी रचनाकारों को भविष्य के लिए गगन भर शुभकामनाएं। लेखनी परिवार आगे भी ऐसी साहित्यिक गतिविधियां आयोजित करवाता रहेगा, जिसमें आपकी सहभागिता अपेक्षित रहेगी। सभी विजेता रचनाकारों को हृदयतल से बधाई, शुभकामनाएं। ✨✨🎉🎊   विजेता रचनाकार एवं उनकी रचनाएँ: - कविता/गीत/गद्य प्रतियोगिता:-   1. आ० सुविधा पंडित जी विधा - गीत  विधान - सरसी /कबीर छन्द आधारित ( 16, 11 मात्रा, पदांत - 21 ) विषय - शब्दों का सावन  आज हृदय संतृप्त हुआ है, भीग मधुर रसधार। सावन की बूँदों -सी बरसे, भव्य भाव -बौछार।। सघन भाव की मेघावलियाँ, छायीं हृदय -प्रदेश। झरते छन्द गीत प्रियकारी, कलम रचे परिवेश।। शब्दों का सावन मद

ताटंक छंद- राधा रानी ©ऋषभ दिव्येन्द्र

श्री राधा अष्टमी की अनंत शुभकामनाएं✨🙏 नमन माँ शारदे नमन लेखनी जगत-स्वामिनी राधा रानी, जय हो  केशव  प्यारी  की। रूप मनोरम नेह सुधामय, जय-जय कीर्ति कुमारी की।। हरि  हृदयेश्वरि  हे  रासेश्वरि,  जय  गोपेश्वरि   कल्याणी, कृष्ण प्रिया वृन्दावन शोभा,   वन्दन भव भय हारी की। सौन्दर्य  मधुरतम  सुन्दरतम,   छवि  कंचनवर्णी  सोहे, मंद मंदिर मुस्कान मनोहर, पुण्य परम हितकारी की। वृक्ष  वल्लरी  प्रमुदित  होते,   हर्षित   होती   कालिंदी, खग वृंदों का कलरव मधुरिम, चरण पड़े सुखकारी की। मृदुल भाषिणी परम पुनीता, निर्मल शुचिता की झोली, शरणागत हम नवल किशोरी, विनय सुनो दुखियारी की। नित नित नयन निहार रहे हैं, दर्शन  की  अभिलाषा  से, ऋषभ वास पग-तल में चाहे,  मंगलमय सुखसारी की। © ऋषभ दिव्येन्द्र

गीत- लेखनी परिवार

नमन, माँ शारदे नमन, लेखनी सूरज हर शाम जहाँ तक जा कर धरती से मिल जाता है । बस वही लेखनी की मंज़िल है हम को  लक्ष्य बुलाता है ।। हैँ  युगल अष्ट विश चरण किंतु है मार्ग एक है दिशा एक,  नयनों में विविध स्वप्न पलते सिद्धांत नेक उद्देश्य नेक । निःस्वार्थ परस्पर नेह बंध मन से हर मन का नाता है । बस वही लेखनी  की मंज़िल है हमको लक्ष्य बुलाता है ।। सागर से हैँ व्यक्तित्व किन्तु कलकल जलधारा से निर्मल,  भर अंक चले चंचल बूँदें बहते जाते निर्झर निश्छल । ऐसा प्रतीत होता है ज्यों जन्मों का अपना नाता है । बस वही लेखनी  की मंज़िल है हमको लक्ष्य बुलाता है ।। ध्वज लिए लेखनी का पथ पर हम बिना विचारे ज़ब निकले,  पथ  दीप्ति शिखा ने दिखलाया , रजनीश   सुदृढ स्तम्भ मिले । संजय  जी  और परम जी का संबल उत्साह बढ़ाता है । बस वही लेखनी  की मंज़िल है हमको लक्ष्य बुलाता है ।। शिवि कोमल मन, रिंकी  चंदन,  अंजलि संप्रीति खिले उपवन, रेखा सरोज संपदा   ओज हैं अंशुमान अनमोल रतन । उत्साह गजल का देख लेखनी का चेहरा खिल जाता है । बस वही लेखनी की मंज़िल है, हमको लक्ष्य बुलाता है ।। सौम्या की मधुर सुधा वाणी ,चुलबुल कलरव चिड़िया रा

लेखनी दिवस - साहित्यिक प्रतियोगिताएं

आप सभी साहित्य प्रेमियों को सादर नमन, अभिवादन। लेखनी स्थापना दिवस के उपलक्ष्य में लेखनी परिवार ला रहा है गीत/कविता/गद्य प्रतियोगिता एवं ग़ज़ल प्रतियोगिता । जिनके नियम हैं:-  ग़ज़ल प्रतियोगिता नियमावली:- ग़ज़ल के मतले (पहला शेर) का एक मिस्रा दिया गया मिस्रा- मुसव्विर बन सुख़नवर रोज़ इक चेहरा बनाता है - होना चाहिए (दोनों में से कोई भी एक मिस्रा हो सकता है)। काफ़िया (तुकांत) एवं रदीफ़ (पदांत) शाइर दिए गए मिस्रे के अनुसार मान्य कुछ भी रख सकता है। ग़ज़ल की बहर हज़ज मुसम्मन सालिम (मीटर 1222 1222 1222 1222, मफ़ाईलुन- मफ़ाईलुन- मफ़ाईलुन- मफ़ाईलुन), जो कि मिस्रे से स्पष्ट होती है, होना अनिवार्य है। इस बहर का उदाहरण:- हज़ारों ख़्वाहिशें ऐसी कि हर ख़्वाहिश पे दम निकले, बहुत निकले मिरे अरमान लेकिन फिर भी कम निकले। निर्णायक मंडल लेखनी परिवार से ही होगा एवं निर्णायक मंडल के सदस्य इस प्रतियोगिता में भाग नहीं ले पाएंगे। उनके सिवा कोई भी, किसी भी उम्र का लेखक प्रतियोगिता में भाग ले सकता है। ग़ज़ल का स्वरचित एवं अप्रकाशित होना अनिवार्य है। निर्णायक मंडल का निर्णय ही अंतिम होगा। आप अपनी ग़ज़ल 5 सितंबर 2024 रात्रि 12 बजे