गीत- गंगा तट ©गुंजित जैन

नमन, माँ शारदे

नमन, लेखनी

विधा- गीत

शीर्षक- गंगा तट


छिपे हुए हैं तट गंगा के, माता के आलिंगन में।


अश्रु कणों का रिमझिम करता, भीगा सावन आया है,

गरज दामिनी ने अंतर का, कैसा द्वंद बताया है!

स्वयं दुखी हैं या भीगे हैं, दुखी मेघ के क्रंदन में,

छिपे हुए हैं तट गंगा के, माता के आलिंगन में।


नवल पात ने उत्साहित हो, पादप को अपनाया है,

शाखाएँ विस्तृत कर पादप भी कितना हर्षाया है,

चारों दिशा हर्ष विसरित है, लेकिन क्यों दुख चिंतन में?

छिपे हुए हैं तट गंगा के, माता के आलिंगन में।


बढ़ती पीर नीर लहरों ने, अस्थिर चित्त बनाया है,

भय से सहमे अस्थिर तट को, सूरज बदल न पाया है,

लौट तटों की शांत शिथिलता, आएगी क्या जीवन में?

छिपे हुए हैं तट गंगा के, माता के आलिंगन में।

©गुंजित जैन 

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