हरिगीतिका छंद ©लवी द्विवेदी

नमन, माँ शारदे

नमन लेखनी

छंद- हरिगीतिका

चरण- चार (दो-दो या चार चरण तुकांत)



कवने दिवस यदुनाथ मुदित महा कृपा बरसाइहौ, 

निर्जन कुटी महु रंक की कवने दिवस ते आइहौ।

प्रभु गेह पूज्य पदारविंद सहाय हो कब लाइहौ,

कब नाथ जानि अनाथ मोको मानि सुत अपनाइहौ।


मैं दीन कलुषित पातकी का विधि कृपा तिन गाइहौं, 

मन मैल वस्त्र कषाय ले का विधि शरण तिन आइहौं। 

यदि हो कृपा यदुनाथ की मझधार मैं तरि जाइहौं 

व्यभिचार हो आचार यदि यदुनाथ आशिष पाइहौं।


मृदुनैन नौकाकार जिन उन नैन काजर पारिहौं, 

निज हाथ से बिनि आसनी चौपर्ति कै भुइ डारिहौं। 

जल शुद्ध नहि, दृगधार से चरणारविंद पखारिहौं,

लै राइ नून उतार अभल कुदृष्टि, प्रभु हिय वारिहौं। 


प्रभु मात्र एकल बार दृष्टि बहोरि अपनी दीजिए,

प्रभु देख लो यक बार मो इतनी कृपा हरि कीजिए। 

सर्वस्व से तुम रीझते यक बार मोसे रीझिए, 

कितना रहोगे दूर हरि अब और मत प्रभु खीझिए।

©लवी द्विवेदी "संज्ञा"

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