कविता- कुछ सूखे कुछ भीगे ख्याल ©रेखा खन्ना
नमन, माँ शारदे
नमन, लेखनी
विधा - कविता
मन के भीतर की बारिश से भीतरी ख्याल गीले थे
बाहरी बारिश में बंद कमरे के भीतर की हवा में उड़ते ख्याल सूखे थे
दोनों ख्यालों के बीच अंतर था
एक जज्बातों की बारिश के नीचे भीग कर वजनदार बनकर दब से गए थे
और सूखे ख्याल बेपरवाह से यहाँ वहाँ बस भटक रहे थे
भटकते ख्यालों को जज्बातों से क्या लेना था वो तो बस दिशा बदल रहे थे
पर गीले हुए पड़े जज्बात बर्फ़ की मानिंद एक जगह जमा हो कर दिल पर बोझ बन पड़े थे
जो ना बह कर निकल रहे थे ना पिघल रहे थे
बर्फ़ हो चुके ख्यालों को एक सुकून भरे आगोश की गर्माहट की दरकार थी
गर वो सुकून मिलता तो क्या भीतर बारिश का मौसम बनता?
भीतर बाहर बस एक दिलकश नज़ारा होता
कुदरत की बहारों में दिल उड़ता फिरता
बारिशों में भी फर्क होता है
भीतर की बारिश दिखती शाँत है पर तूफानों को अपने भीतर समेटे होती है और पलकों का बाँध उसे रोके रखता है।
©रेखा खन्ना
बेहद भावपूर्ण🙏
जवाब देंहटाएंबेहद खूबसूरत बेहद भावपूर्ण ख़्याल 💐
जवाब देंहटाएंअत्यंत भावपूर्ण रचना। 🙏🍃
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