कविता- प्राण प्रियतम ©संजीव शुक्ला "रिक्त"
नमन, माँ शारदे
नमन, लेखनी
नेह उर में ले ,प्रबल विश्वास मन में,
ले मिलन का लक्ष्य विह्वल प्राण-प्रण में l
दर्श की अभिलाष ले युग तारिका में,
बिंब हैं प्रेमाश्रु बूंदों के झरण में l
हाथ ले वरमाल प्रत्याशा नयन में,
हा,! कठिन अतिकाल प्रियतम के वरण में l
मेरु होती पीर व्याकुल प्रियतमा की,
दृष्टि फेरो प्राण आश्रय दो शरण में l
युग बिताए शोध में वत्सर गुजारे,
अब कदाचित आयु है अंतिम चरण में l
हो चुकी प्रियवर प्रतीक्षा की तितिक्षा,
तीव्र होती व्यग्रता प्रत्येक क्षण में l
व्याप्त हो सर्वत्र चेतन जीव जड़ में,
वेद वाणी से सुना मैंने श्रवण में l
पुष्प पल्लव तरु तने के मूल में तुम,
कंद फल में कंटकों में छाल तृण में l
तुम दिशा,नक्षत्र,धरती में गगन में ,
हो समाहित सृष्टि के आधार कण में l
वेग सरिता का ,चपलता निर्झरों की,
अग्नि ज्वाला ,वायु, जल ,आकाश मृण में l
तुम पराभव हो तुम्ही उद्भव जगत का ,
सृष्टि सामंजस्य गृह की गति ,भ्रमण में l
ग्रीष्म,पावस शीत ऋतु का चक्र तुमसे,
तुम विगत हो,और आगत आवरण में l
तुम शिराओं में रुधिर बन कर प्रवाहित,
स्वास, तन, स्पंद जीवन में मरण में l
ज्ञान हो तुम मोक्ष हो उद्धार तुमसे ,
देह के उत्थान में तन के क्षरण में l
क्रोध में तुम मोह में,करुणा,विरह में ,
सर्वदा प्रत्येक दानी में कृपण में,
आस्था है, धर्म है विश्वास तुम से ,
द्वार हो तुम मोक्ष का अंतःकरण में l
तुम सृजन हो ,भाव ,तुम हो अक्षरों में ,
ताल, लय, लिपि वर्तनी में वर्ण, गण में l
भाव की अभिव्यंजना के प्राण प्रियतम,
छंद ,रस, प्रत्येक रचना व्याकरण में l
प्राण को आभास होता है तुम्हारा ,
गंध विसरित है सदा वातावरण में l
मंदमति मूरख न जाने भक्ति, पूजा ,
"रिक्त" चित उलझा उदर पोषण भरण में l
©संजीव शुक्ला "रिक्त"
अत्यंत उत्कृष्ट एवं प्रभावशाली कविता 💐🙏🏼
जवाब देंहटाएं,सादर आभार दीप्ति जी l 💐
हटाएंनमन ,लेखनी l 🙏
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