मोहब्बत ज़िंदगी से ©अंजलि
नमन, लेखनी
कभी बारिश की बूँदों को,
सूखी जमीं पर गिरते देखा है?
महक सी जाती है ना
उसका आना भी ऐसा ही था।
पहली बार उसे देखा,
उसकी आँखों में खो सी गई,
उसकी बातों में मानो
मैंने नई खुद को पा लिया।
वो गिटार बजाता,
पुराने गाने गाता,
लोगों के हुजूम में,
अलग सा नजर आता।
धीरे-धीरे वक्त बीतने लगा
वो मुझे जानने लगा,
मुलाकातें बढ़ने लगी
और मेरी चाहत दोस्ती में बदलने लगी।
वो मेरे साथ अपने सुख-दुख बाँटता,
मुझे मेरी गलतियों पर डाँटता,
मैं सोचती कि वक्त बस यहीं थम जाए,
हम साथ हो और जिंदगी गुजर जाए।
पर कहते है न कि
वक्त किसी के लिए नहीं रुकता,
और जो किस्मत में न हो,
वो चाहकर भी नही मिलता।
एक दिन उसने मुझे अपनी मंज़िल
अपनी मोहब्बत से मिलवाया,
सारे ख्वाबों को मानो एकदम
हक़ीक़त की ज़मी पर ले आया।
मोहब्बत अधूरी रह गई
पर दोस्ती हरदम पूरी रही,
माना स्याह काली रात थी,
पर आने वाली नई शुरुवात थी।
दिमाग ने दिल को एक बात बताई,
जिंदगी सफ़र है, बात समझाई,
जरूरी नही जो चाहो वो मिल जाए,
पर जो मिले उसमे सुकून से जिया जाए।
©अंजलि
बहुत-बहुत सुंदर रचना🌹🌹
जवाब देंहटाएंसादर आभार दी🙏
हटाएंबहुत उम्दा🙏
जवाब देंहटाएंशुक्रिया गुंजित💐
हटाएंवाह, कमाल की रचना 👌👌👏👏
जवाब देंहटाएंआभार ऋषभ जी🙏
हटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना दीदी🙏🙏
जवाब देंहटाएंशुक्रिया तुषार💐
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