लम्हा था, लम्हा बन गुज़र गया ©रेखा खन्ना

खुशी का एक लम्हा
होंठों पर ठहर ना सका
ग़मों की बारात ऐसी सजी
दिल तन्हाई का आशिक़ हो गया
लम्हा जाने कब गुजर गया
खुशी का एहसास
बस लम्हों की कैद में बस गया
दास्तां, में खुशियों का जिक्र नहीं
दिल ग़मों को ग़ज़ल बना लिख गया
खुशी का एक लम्हा खुशी को तरस गया
लम्हा था, लम्हा बन गुज़र गया।

©रेखा खन्ना

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