मुकरियाँ ©दीप्ति सिंह

 बैरी हमको बहुत सताये

लाख बुलाऊँ पास न आये 

कर डारा है मोहे पागल 

का सखि साजन? ना सखि बादल ।


मन करता है उसकी बातें 

सारा दिन और सारी रातें 

क्षण भर को भी ना बिसराती

का सखि साजन? ना सखि पाती ।


वो आये तो मन हरसाए 

घर को उजियारा कर जाए 

घर आंगन की सूरत बदली 

का सखि साजन? ना सखि बिजली ।


देखूँ उसको मन खो जाए 

सारी सारी रैन जगाए 

लागे मोहे कितना प्यारा 

का सखि साजन? ना सखि तारा ।     

 

©दीप्ति सिंह 'दीया'

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