गीत-सीता ©संजीव शुक्ला
त्रेता से रघुकुल गाथा जन-जन की सुनी सुनाई है l
कालांतर से किन्तु जानकी की छवि बदल न पाई है l
युगों युगों से सिया वही संत्रास वही हैँ त्राण वही l
सदा अस्मिता की रक्षा में सीता के प्रण प्राण वही l
वही समर्पण मात्र राम पर प्राण हृदय जीवन अर्पण,
हृदय वेधते दिशा-दिशा से तीक्ष्ण विषैले बाण वही l
भूमि सुता पर सदा तर्जनी जग ने सहज उठाई है l
मन प्राणों में श्वास शिराओं में केवल श्रीराम रहे l
विरह व्यथा के अश्रु नयन से आजीवन अविराम बहे l
आजीवन पावन पवित्रता का प्रमाण देती आई,
जनकनंदनी जगदम्बा ने जग के कठिन प्रहार सहे l
अहो! युगों की अग्नि परीक्षा भीषण पीड़ादाई है l
ढूंढा है प्रत्येक पुरुष में...... अंश राम का नहीं मिला l
युगों-युगोंसे पुरुषोचितअभिमान जहाँ था वहीं मिला l
सहज समर्पित मर्यादा पुरुषोत्तम को ज़ब ज़ब खोजा,
मिथ्या दम्भ,कहीं पौरुष,शंका का रावण कहीं मिला l
किन्तु जानकी पूर्ण समर्पित सहज दृष्टि में आई है l
©संजीव शुक्ला 'रिक्त'
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आभार लेखनी 🙏
जवाब देंहटाएंजितनी खूबसूरत कृति.. उतनी ही खूबसूरत प्रस्तुति👏👏👏👏👏
जवाब देंहटाएंअद्भुत🙏🙏
जवाब देंहटाएंअद्भुत विलक्षण गीत सर जी....
जवाब देंहटाएंअहो! युगों की अग्नि परीक्षा भीषण पीड़ादाई है l...
सादर नमन सर....
अत्यंत उत्कृष्ट एवं संवेदनशील गीत सृजन 💐💐💐💐🙏🏼
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर गीत सिरजी 🙏🙏🙏
जवाब देंहटाएंउत्कृष्ट गीत सृजन 🙏🏻🙏🏻🙏🏻
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