नहीं कहते ©रेखा खन्ना
तुम्हें मोहब्बत नहीं है हमसे, ये जानाँ हमें पता है यकीकन
मिल कर गले मिलने को भी तो दिल से जुड़ा नहीं कहते।
वाकिफ थे हम भी जमाने की दोगली रवायतों से
रेशम पर अक्सर सुनहरे टाट के पैबंद को अच्छा नहीं कहते।
कहावतें क्यूंँ गलत नहीं होती, अक्सर सोच कर उलझ जाती हूँ
बुरा हो अगर किसी का तो कहावतों के ज्ञान को ढूँढा नहीं कहते।
थी दिल्लगी बस तुमसे, प्यार का नशा चढ़ा था जहन में
पर अक्सर नशेड़ी को समझदार इसाँ नहीं कहते।
रात को अक्सर गले लगा कर हम जिंदगी को अलविदा कहते
सुबह की रौशनी में जब जागे, जिंदगी को अलविदा नहीं कहते।
लहरों पर थी चाँदनी, दूर गगन में था चाँद
तरसती हुई निगाहों को क्यूँ प्यासा नहीं कहते।
कांटों की सरपरस्ती में गुलाबों का चमन महकता है
काँटो को फिर क्यूँ हम गुलदस्ता नहीँ कहते।
नाराज़गी खुद से थी या इस दिल को दुखाने वाले से
दिल को क्यूंँ हमारे तुम एहसासों से भरा नहीं कहते।
© रेखा खन्ना
Waah bahut khoob ma'am👌👌🙏
जवाब देंहटाएंShukriya 😊
हटाएंबेहद खूबसूरत 💐💐💐💐
जवाब देंहटाएंJi shukriya apka 🙂
हटाएंउम्दा🙏
जवाब देंहटाएंShukriya
हटाएंभावपूर्ण रचना 💐💐
जवाब देंहटाएंJi shukriya
हटाएंकाँटों को फिर क्यूँ हम गुलिस्तां नहीं कहते ।
जवाब देंहटाएंवाहह्ह वाह्ह्ह् ।।।
Shukriya
हटाएंवाह्हहहहहहह... खूबसूरत कहन है मैम
जवाब देंहटाएंShukriya
हटाएंबहुत खूबसूरत मैम, 👏👏
जवाब देंहटाएंShukriya
हटाएंबहुत सुंदर रचना मैम🙏
जवाब देंहटाएंShukriya
हटाएं