सुख़नवर निकलेंगें © हेमा काण्डपाल
अनवर,अव्वल और सुख़नवर निकलेंगें
मेरे बच्चे मुझसे बेहतर निकलेंगें
इक फूटी गागर से सागर निकलेंगें
मेरे हर मिसरे से लश्कर निकलेंगें
कव्वा प्यासा मर जाएगा कलयुग में
और घड़े में केवल कंकर निकलेंगें
मिट्टी में मिल जाएगी जब ये दुनिया
फिर इकबारी ओम से शंकर निकलेंगें
ऊँचे लोगों की है ये फ़ीकी महफ़िल
हम इक दो ग़ज़लें पढ़कर घर निकलेंगे
हँसते गाते सुंदर औ रंगीं चेहरे
पास से देखोगे तो बंजर निकलेंगें
बैठे होंगे रस्ते में दीदार को वो
हम भी घर से आज घड़ी भर निकलेंगे
वर्षों पहले कोई शायर कहता था
आने वाली नस्लों के पर निकलेंगें
इतना विकसित हो जाएगा डी एन ए
देखना अब के पैरों से सर निकलेंगें
© हेमा काण्डपाल 'हिया'
वाह वाह क्या बात है🙏🙏
जवाब देंहटाएंबहुत खूब दीदी 😍👌🙏
जवाब देंहटाएंबेहतरीन बेबाक़ गज़ल 💐💐💐
जवाब देंहटाएंउम्दा ग़ज़ल🙏
जवाब देंहटाएंबेहद उम्दा गज़ल हर शेर लाजवाब 👏👏👏👏❤❤❤💐💐💐💐
जवाब देंहटाएंक्या खूब ग़ज़ल हुई है.. वाह्ह्हह्ह्ह्ह 💐💐
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरत गजल, वाह वाह्ह्ह, अद्भुत मैम 😊👏🙏
जवाब देंहटाएंबेहतरीन ग़ज़ल 👌👌
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