भारतवर्ष ©लवी द्विवेदी
किरीट सवैया छंद
चरण- 4 (चार चरण समतुकांत)
विधान- भगण × 8
SII SII SII SII SII SII SII SII
पंथ परस्पर प्रेम प्रतीति पिरो पुनि पावस वारि प्रवाहन,
गर्वित शौर्य सुजान सुमान निदान विधान विधा बहु गायन।
भारतवर्ष नवोदय भानु नवोदित पर्ण सुवर्ण पुरातन,
नेति उवाच विभिन्न विभा बहु कौशल शिल्प प्रधान प्रजाजन।
एकल अंबु धरा दिग चार विचार
अचार सुचार प्रवाहित,
कर्म कलांतर उच्च विनोद प्रमोद अमोद पयोद सुशोभित।
नित्य निहार नितान्त महा जयघोष निरन्तर नाद स्वरा चित,
धन्य धरा कण पर्ण स्वरा तृण धन्य विहान विवर्तन आसित।
चाप प्रवीण कछार नवीन शिला रिपु भूपति एकहि वाचन,
धर्म जिहाँ सतकर्म अनेक विवेक अशोक अलोपहि सावन।
हे रज धन्य प्रभू जिँह राम नरायण कृष्ण उमा महि तारन,
पूज्य पुरातन ग्रंथ विधान तड़ाग नदीश सुसज्जित आँगन।
धन्य जवान किसान पुनर्यशगान
स्वरंजित तोरण आदिक,
द्वार महाधुनि दुंदुभि बाजि उठी रसना लयकार स्वभौमिक।
ओज विहार प्रवाहित धार कृपाण सुप्राण तजै तन सैनिक,
माँ ऋण भार अपार तिरोहित भाव त्वमेव जया जय माँ विक।
©लवी द्विवेदी
क़तील सुंदर छंद रचना❤️❤️❤️❤️❤️
जवाब देंहटाएंअद्भुत 💐💐
जवाब देंहटाएंVery nice 👌
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर छन्द sister 👌👌🙏
जवाब देंहटाएंउत्कृष्ट छंद सृजन🙏
जवाब देंहटाएंअति उत्कृष्ट एवं ओजपूर्ण सृजन 💐💐💐💐
जवाब देंहटाएंअतिरम्य छंद सृजन दीदी 👏🙏
जवाब देंहटाएंअत्यंत उत्कृष्ट छंद सृजन 👏👏💐💐
जवाब देंहटाएंBhut bhut sunder 👏👏👏👏
जवाब देंहटाएंअद्भुत 👏🏻👏🏻👏🏻👏🏻
जवाब देंहटाएंअद्भुत 👏🏻👏🏻👏🏻👏🏻
जवाब देंहटाएंअद्भुत ,
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