उठ ©सूर्यम मिश्र
पराक्रम से पराजय को पस्त कर
मर ना मन को मोद से मदमस्त कर
सर्वदा तू सत्य को स्वीकार कर
धमक कर जा धमनियों में धार धर
ये पौरुषी प्रारब्ध का प्रारंभ है
अंत है, ये आदि का आरम्भ है
कर्म कर से कर के कर कृतकृत्य कर
नवोन्नति से नभ को नत तू नित्य कर
भूख भव की भूल कर तू भोर बन
शिल्प तू शिव का,सृष्टि में शोर बन
प्रवर है ये परीक्षा, प्रण प्राण है
यदि नियति पे नत, समझ निष्प्राण है
गौड़ ही गुज़रे हैं जो हैं गिरे ना
विषम ही वासर रहें वो फिरें ना
क्रूर कारन काल का तू काट दे
बंद पथ को बलाबल से बाँट दे
भगा भय को भाल पर भैरव बिठा कर
अदम हो, आनंद का उत्सव मनाकर
क्यूँ खड़ा है तू कुढ़ा सा?, क्यूँ पड़ा तू मौन?
सामना तेरा करे जो, है सबल वह कौन?
शत्रु का साहस, तुझे ललकार दे!!
श्वान वो, शावक को वो पुचकार दे!
मुश्किलों के मर्म को जा चोट दे
हार का उठ कर गला तू घोंट दे
© सूर्यम मिश्र
Bahut khoob Bhai ❤️👌👌
जवाब देंहटाएंआभार भ्राता श्री 😊🙏
हटाएंSuper bhai ❤️👍👍
हटाएंवाह्ह बहुत खूब
जवाब देंहटाएंबहुत धन्यवाद 😊🙏
हटाएंबहुत-बहुत धन्यवाद सर 🙏😊
जवाब देंहटाएंअद्भुत अद्वितीय मिश्रा जी👌💥
जवाब देंहटाएंआभार 😊🙏
हटाएंआभार 😊🙏
हटाएंअलंकारों का अद्भुत संगम बहुत खूब अद्वितीय रचना है💐🥰
जवाब देंहटाएंआभार 😊🙏
हटाएंवाह , खूब बहुत उम्दा...💐❣️❣️
जवाब देंहटाएंसधन्यवाद 😊🙏
हटाएंबहुत ही भावपूर्ण अभिव्यक्ति और शानदार शब्द चयन!🙏👌👌
जवाब देंहटाएंआभार शायरा 😊🙏
हटाएंबहुत खूब
जवाब देंहटाएंसधन्यवाद 😊🙏
हटाएंअद्भुत अद्भुत अद्भुत, उत्तम शब्द चयन एवं अलंकारों का उत्तम प्रयोग🙏👏
जवाब देंहटाएंआभार गुंजित भैया 😊🙏
हटाएंLajawab chote bhai 😘😘
जवाब देंहटाएंआभार 😊🙏
हटाएंअलंकार से अलंकृत अप्रतिम सौंदर्य युक्त सृजन 💐💐💐
जवाब देंहटाएंखूब धन्यवाद दीदी 😊🙏
हटाएंउम्दा लेखन! अतिसुंदर!
जवाब देंहटाएंआभार विधि 😊🙏
हटाएंबहुत खूब 👌👌👌👌👌
जवाब देंहटाएंआभार सर 😊🙏
हटाएंवाहहहह
जवाब देंहटाएंआभार मैम 😊🙏
हटाएंAmazing ✍ 👏
जवाब देंहटाएंआभार मैम 😊🙏
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