दिनकर ©संजीव शुक्ला
तम हर, दिनकर हे !अँधियारे पथ के दिनकर,
दिनकर थक कर क्या कभी शांति से सोता है?
निशि दिवस मात्र संकल्प रहा हो तिमिर नाश,
वह घोर अँधेरों से कब...... विचलित होता है ?
तुम सदा साथ हो दीन,विकल व्याकुल जन के,
जिनकी आवाज दबी........ खेतोँ की माटी में l
है भूख, वही परिवेश....... जहाँ तुम छोड़ गए,
परिवर्तन आया नहीं........ कुटिल परिपाटी में l
अब भी किसान जीवन यापन हित व्याकुल है,
अब भी ऋण पर्वत भार....... पाग में धरता है l
अब भी दिल्ली को छोड़......शेष भारत भर में,
श्रापित खेतिहर खेतोँ में...... प्रतिदिन मरता है l
अब भी चोरों के मस्तक..... मुकुट धरे जाते,
तुझ सा जन नायक शेष नही है कविकुल में l
जो शोषित पीड़ित जन की व्यथित गिरा बनकर,
निर्भीक मुखर स्वर करे.... छद्म कोलाहल में l
मसि,समसि,समर्थ न रही शेष रह गया समर,
विरुदावलि शेष,रही लख.. सत्ता भृकुटि वक्र l
हे ज्योति हीन नयनों की... आभा के दीपक,
हे दिनकर ! आकर देख काल गति का कुचक्र l
© संजीव शुक्ला 'रिक्त'
उत्कृष्ट कविता सर🙏
जवाब देंहटाएंबेहद खूबसूरत कविता
जवाब देंहटाएं😊🙏
हटाएंअत्यंत उत्कृष्ट सृजन 🙏🙏💐💐
जवाब देंहटाएं😊🙏
हटाएंBahut umda kavita Sirji 🙏🙏
जवाब देंहटाएं💐💐
हटाएंअत्यंत उत्कृष्ट एवं मर्मस्पर्शी सृजन 🙏🏼
जवाब देंहटाएं😊🙏
हटाएंउत्कृष्ट सृजन सर👏👏
जवाब देंहटाएं😊💐
हटाएंबेहद खूबसूरत 👏
जवाब देंहटाएंबहुत ही उत्कृष्ट 🙏🏻🙏🏻
जवाब देंहटाएंशुक्रिया सिस 😊
हटाएंउत्कृष्ट रचना
जवाब देंहटाएंविनम्र आभार 🙏💐
हटाएंसर नमन.... उत्कृष्ट , वंदनीय कविता सर ❤️❤️❤️❤️❤️❤️❤️❤️❤️❤️❤️❤️❤️
जवाब देंहटाएंबहुत-बहुत सुंदर रचना सर 🙏😊
जवाब देंहटाएं😊🌺
हटाएंAapse seekhne ko har waqt milta hai sir. Behad khoobsurat ❣️
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