कठपुतली ©अनिता सुधीर आख्या

 आँख में अंजन दांत में मंजन 

नित कर नित कर नित कर

नाक में ऊँगली कान में लकड़ी 

मत कर मत कर मत कर"..

कितनी सरलता से हँस-हँसकर 

जीवन का पाठ पढ़ाती थी वो

दूसरों के हस्त संचालन से नाचती

काठ की कठपुतली थी वो...

जिज्ञासा थी बालमन में

कैसे डोर से बंधी ये नाचती होगी..

पर्दे के पीछे कमाल सूत्रधार का 

जो उंगलियों से उन्हें नचाता होगा...

जिज्ञासा अब शांत हो रही 

अब डोर है कितने अदृश्य हाथों में...

काठ के तो नहीं  

भावनाएं है

कुछ सपने 

कुछ आकांक्षाएं है..

निपुणता से संचालन करते हैं लोग 

परिवार धर्म मर्यादा रिश्तों के नाम पर

कितनी बखूबी से नचाते है लोग..

वो काठ की कठपुतली थी

दूसरों के इशारे पर नाचती थी वो 

और अब...

© अनिता सुधीर आख्या

टिप्पणियाँ

एक टिप्पणी भेजें

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

कविता- ग़म तेरे आने का ©सम्प्रीति

ग़ज़ल ©अंजलि

ग़ज़ल ©गुंजित जैन

पञ्च-चामर छंद- श्रमिक ©संजीव शुक्ला 'रिक्त'