मोहब्बत ©रेखा खन्ना

 खामोशियों से कुछ नहीं बदलेगा, कभी तो सिले हुए लबों को खोलना होगा

आँखों का बोलना शायद काफी नहीं, इक बार सीने से लगना होगा।।


इश्क घुलेगा दिल के भीतर तभी नस नस में बिजली बन कर  दौड़ेगा

आगोश में भर कर इक बार तेरे दिल की धड़कनों की जुबां को समझना होगा।।


फिजाओं में जो घुली खुश्बू है आज, ना जाने कितने फूलों का पहरा होगा

बगिया के फूलों का तेरे रूखसार का गुलाबी रंग देख जायज़ रूठना होगा।


रिमझिम रिमझिम फुहारों का सुहाना मौसम सफर पर निकला है

तेरी मदमाती अदाओं को देख बूंदों को भी तेरे इश्क में बरसना होगा।


मोहब्बत की कोशिश जो आंखों से जाहिर हो वो मैकदा होगा

चाहतों को जो बांहों का घेरा मिले गर तो जायज़ आज बहकना होगा।।


जिस राह भी चल पड़े हम वो रस्ता तेरे घर का ही होगा

गर स्वीकार करो हर हाल में हमें तो डोली में लाज़िमी बैठना होगा।

                ©रेखा खन्ना

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