कहीं मोहब्बत तो नहीं हो गई ©रेखा खन्ना
अच्छा सुनो!
सुनो ना! कुछ पुछूंँ तुम से
हांँ बोलो ... क्या जानना चाहती हो?
अच्छा एक बात तो बताओ... मैं और तुम तो सिर्फ दोस्त हैं ना, कुछ समय पहले ही मिले हैं ना, लेकिन दोस्ती ज़रा जल्दी गहरी हो गई हमारी।
हाँ सही कह रही हो तुम ... मैं भी यही सोचता हूँ कि कितनी जल्दी हम दोनों कितने अच्छे दोस्त बन गए हैं कि अपनी हर बात बेझिझक एक दूसरे को कह देते हैं।
हाँ सही कहा पर ये भी तो सच है ना कि हम रोजाना बात नहीं करते हैं। कभी कभी तो महीनों बात नहीं होती हमारी।
हाँ ये भी सही कह रही हो तुम।
अच्छा ये बताओ कि आज तक कभी गले लगाया है मुझे?
अरे ये ख्याल कैसे आया तुम्हारे दिमाग में, वाकई में हमने आजतक एक दूसरे को गले तो लगाया ही नहीं।
अच्छा फिर सपने में क्यूँ गले लगा लेते हो बात बात पर। हकीकत में तो कभी ऐसा नहीं करते हो। डरते हो क्या मुझसे।
हुंँहहहहहह डर और तुम से .... शक्ल देखी है अपनी
क्यूंँ, क्या खराबी है इस शक्ल में, इसे देख कर ही दोस्ती की थी ना।
अच्छा अच्छा बात ना घुमाओं और सच सच बताओ आखिर माजरा क्या है ....
तुम ने ही अपने सपने सुनाएँ ना मुझे ....
हाँ ... सुनाएँ तो क्या हुआ। मैंने ये तो नहीं कहा ना कि मैंने तुम्हें गले लगाया, मैंने तो हमेशा यही कहा कि तुम मेरे सपने में आकर मेरे गले लग जाती हो।
अच्छा मैं आती हूँ और तुम्हारे गले चिपक जाती हूंँ यही कह रहे हो ना। तो मना क्यूँ नहीं करते हो मुझे कि यूँ ना चिपका करो ... मुझे अच्छा नहीं लगता।
तब तो मुझे देखते ही बाँहें खोल देते हो .... तो वो क्या है।
अरे क्यूँ पीछे पड़ गई हो मेरे आज?
अच्छा मैं पीछे पड़ गई हूंँ। तो ये बताओ कि सपना कौन देखता है .... तुम ही ना
मुझे सपने में कौन बुलाता है ... तुम ही ना
मुझे अपने गले कौन लगने देता है .... तुम ही ना
कौन मेरा सपनों में इंतज़ार करता है ... तुम ही ना
कहीं तुम्हें मोहब्बत तो नहीं होने लगी इसलिए ही अपनी चाहत को सपनों में देखने लगे हो।
अच्छा कुछ पुछूँ तुम से .... हाँ कहो अब और क्या पूछना है?
अगर मैं खुद ही कह दूँ कि आज मुझे कस कर अपने गले लगा लो तो क्या गले लगाओगे मुझे 🤔
अरे! ऐसे टुकुर-टुकुर क्या देख रहे हो, बोलो ना गले लगाओगे यां नहीं।
और फिर कुछ देर के सन्नाटे के बाद .....
अरे! क्या कर रहे हो तुम ये, छोड़ो, छोड़ो मुझे...
अरे तुम ने ही तो अभी अभी कहा कि गले लगा लो मुझे।
मैंने? मैंने कब कहा? मैंने तो सिर्फ पूछा था तुमसे।
हाँ तो मैंने तो तुम्हारी बात मान कर तुम्हें अपने गले लगा कर मोहब्बत का इज़हार कर दिया है ना, जैसे रोज़ अपने सपनों में करता हूँ।
अरे! दूर हटो.... तुम क्यूंँ मेरे गले जबरदस्ती पड़ रही हो अब?
हाँ तो तुम ही तो रोज अपने सपने में यही सुनाते हो ना मुझे कि तुम्हारे यूँ मुझे गले लगाते ही मैं भी तुम्हें कस कर गले लगा लेती हूँ।
तो बुद्धू राम क्या समझे?
क्या समझना है अब..... हम दोनों ही एक-दूसरे को मोहब्बत करते हैं और साथ जीना चाहते हैं पर अब तक हम सिर्फ दोस्त बनकर ही साथ जी रहे थे।
अच्छा जब इतना समझदार हो ही गए हो तो दूर क्यूंँ खड़े हो एक बार फिर से मोहब्बत से मुझे गले लगा लो ना।
और फिर दो दोस्त हमेशा के लिए एक हो गए।
©दिल के एहसास। रेखा खन्ना
👌👌👏👏
जवाब देंहटाएंShukriya
हटाएंउम्दा रचना 👌👏
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया 👌👌👌💐💐
जवाब देंहटाएंShukriya
हटाएंखूबसूरत👌
जवाब देंहटाएंShukriya
हटाएंबहुत खूब 💐
जवाब देंहटाएंShukriya
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