ग़ज़ल © प्रशान्त

 इक जिन्दगी.....जो उम्र भर थी लापता क्या फ़ाएदा  l

इक मौत जिसको जी गये हर हादसा क्या फ़ाएदा  ll


मैं चाहता था दिल मिरा...तड़पे नहीं धड़के फकत... 

ये दिल मगर है ख्वाहिशों का मक़बरा क्या फ़ाएदा ll


मैं आइने से..........आइना मुझसे हुआ हैरत ज़दा... 

सूरत दिखी....सीरत मगर है गुमशुदा क्या फ़ाएदा ll


अन्धी अदालत मांगती है...झूठ से सच का सुबूत... 

हर काएदा-क़ानून है.......बे-काएदा क्या फ़ाएदा  ll


हर आदमी डरता बहुत है....हादसों से क्यूँ 'ग़ज़ल'... 

ये जिन्दगी क्या है फकत इक बुलबुला क्या फ़ाएदा ll

                                                                  

                                                                        © प्रशान्त 'ग़ज़ल'

टिप्पणियाँ

  1. वाह बेहद उम्दा और आलातरीन गजल 👌👌👌👌

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