निराशा ©ऋषभ दिव्येन्द्र
आशा दिखती चूर्ण, दिखे चहुँओर निराशा।
भरे हृदय बस आह, लुप्त सारी प्रत्याशा।।
उठती कितनी पीर, सुनो जब टूटे सपने।
छाये व्यथा अपार, लगे अन्तर्मन तपने।।
शिथिल-शिथिल सी श्वास, क्लांत-सी लगती काया।
तम का घन अम्बार, त्रास अंतस में छाया।।
एकाकी का भाव, समाहित जीवन कण में।
नित अनगिन अवरोध, दिखाई दे प्रतिक्षण में।।
©ऋषभ दिव्येन्द्र
हृदय से आभार मंच का 🤗🙏
जवाब देंहटाएंउत्कृष्ट पंक्तियाँ🙏
जवाब देंहटाएंधन्यवाद आपका 🤗🙏
हटाएंअत्यंत सुंदर। 🙏🍃
जवाब देंहटाएंबहुत आभार 🤗🙏
हटाएंअत्यंत भावपूर्ण एवं प्रभावशाली 💐
जवाब देंहटाएंअत्यन्त आभार आपका 🤗🙏
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