ग़ज़ल ©अंशुमान मिश्र
नमन, माँ शारदे
नमन, लेखनी
फिर बचाने को बिखरता आशियाना,
लौटकर गर आ सके, तो लौट आना।
मैं तेरी नजरों में फिर से डूब जाऊंँ,
और तू बिन कुछ कहे सब कुछ बताना।
वो तुझे पाना, मगर फिर खो भी देना,
याद है सब जीत कर, सब हार जाना।
छोड़ने को, एक झूठा सा तेरा सच,
रोकने को, इक मेरा सच्चा बहाना।
इक सुनाने को, तेरी झूठी कहानी,
इक छिपाने को, मेरा सच्चा फसाना।
हो सके तो लौट कर करना मुकम्मल,
इक अधूरा सा बचा किस्सा पुराना।
©अंशुमान मिश्र
क्या कमाल की ग़ज़ल है...🙏🔥
जवाब देंहटाएंबेहद शुक्रिया भाई
हटाएंवाहहहह बेहतरीन ग़ज़ल 🙏🍃
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद आपका
हटाएंलाजवाब गज़ल हुई है 💐
जवाब देंहटाएंबेहद उम्दा ग़ज़ल भाई👌👌
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