ग़ज़ल ©संजीव शुक्ला
कोई टूटा हुआ गुलदान बनकर देख लेना ।
कभी बेकार सा सामान बनकर देख लेना ।
नसीहत हर कदम पर खुद-ब-खुद मिलने लगेंगी..
किसी दिन बस ज़रा नादान बन कर देख लेना ।
चले आएंगे पीछे लोग जितना दूर जाओ..
किसी सहरा में नखलिस्तान बन कर देख लेना ।
नए हर रास्ते पर जा-ब-जा काँटे मिलेंगे..
हमारी राह से अनजान बनकर देख लेना ।
नया मिसरा कोई जो भी सुनेगा जोड़ देगा..
अधूरी नज़्म का उन्वान बन कर देख लेना ।
मिलेगी तालियाँ हर बात पर ये सोचना मत..
सुखनवर हो कभी इंसान बन कर देख लेना ।
©संजीव शुक्ला 'रिक़्त'
वाह बेहद खूबसूरत गज़ल
जवाब देंहटाएंअधूरी नज़्म का उन्वान बनकर देख लेना ।
आभार 🙏
हटाएंवाह, बहुत ही बेहतरीन और उम्दा ग़ज़ल आदरणीय
जवाब देंहटाएंआभार 💐
हटाएंसुखनवर हो कभी इंसान बनकर देख लेना... वाह🙏
जवाब देंहटाएंआभार
हटाएंआभार लेखनी 🙏
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