ग़ज़ल ©गुंजित जैन
आँखों में खंज़र देखने का ख़्वाब है,
तुमको नज़र भर देखने का ख़्वाब है।
काजल लगाऊँ मैं इजाज़त हो अगर?
सजकर, सँवरकर देखने का ख़्वाब है
शायद कभी तुम हाथ पकड़े ना चलो,
ऐसा सफ़र, पर देखने का ख़्वाब है।
मीठा अगर खारा बना, कैसे बना?
दरिया-समंदर देखने का ख़्वाब है।
"गुंजित" जहाँ सब साथ दें ऐसा कोई,
ख़्वाबों भरा घर देखने का ख़्वाब है।
©गुंजित जैन
बेहद खूबसूरत ग़ज़ल भाई
जवाब देंहटाएंसादर आभार दीदी।
हटाएंबहुत शानदार👌👌👌👌👌
जवाब देंहटाएंसादर आभार सर।
हटाएंबेहतरीन ग़ज़ल 💐
जवाब देंहटाएंसादर आभार सर।
हटाएंबेहतरीन ग़ज़ल हुई है भाई
जवाब देंहटाएंसादर आभार दीदी
हटाएंसुंदर ग़ज़ल!
जवाब देंहटाएंसादर आभार
हटाएंबेहतरीन गज़ल बेटा 👏👏👏❣️❣️
जवाब देंहटाएंसादर आभार मैम
हटाएंवाहहहह बेहतरीन ग़ज़ल भैया 🙏🍃
जवाब देंहटाएंसादर आभार
हटाएंसादर आभार लेखनी, नमन
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