ग़ज़ल ©अंशुमान मिश्र
नमन, माँ शारदे
नमन, लेखनी
ज़रा बेचैन हूंँ, कोई निशानी छोड़ आया हूंँ,
कहीं पीछे अधूरी - सी कहानी छोड़ आया हूंँ।
समेटी ज़िन्दगी मैंने बहर में औ' ग़ज़ल कह दी,
कि मिसरों में फकत यादें पुरानी छोड़ आया हूंँ।
बुढ़ापे के सभी आज़ार मकते में लिखे मैंने,
कि मतले में महकती सी जवानी छोड़ आया हूंँ।
कलम से गर्दनें हर्फों की कर डाली कलम मैंने,
तड़पते काफ़ियों में खूंँ फिशानी छोड़ आया हूंँ।
किसी मासूम राही से, बदल सामान मैं अपना,
ज़हर लेकर के उसके पास पानी छोड़ आया हूंँ।
©अंशुमान मिश्र
क्या जबरदस्त ग़ज़ल हुई है, वाहहहहहह
जवाब देंहटाएंशुक्रिया भाई ❣️
हटाएंमेरी गजल पटल पर प्रस्तुत करने हेतु लेखनी का आभार❣️✨🙏
जवाब देंहटाएंबेहतरीन ग़ज़ल भाई👌👌
जवाब देंहटाएंबेहतरीन ग़ज़ल बेटा 🌺🌺🙏
जवाब देंहटाएंभाईसाहब क्या गजब
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