ग़ज़ल ©दीप्ति सिंह 'दीया'
राधेश्याम
नमन,माँ शारदे
नमन, लेखनी
बहर -122 122 122 122
तेरी नेमतों से शिकायत नहीं है,
मगर ख़ुश रहें ये भी हालत नहीं है।
सज़ा बेक़सूरों को भी मिल रही है ,
जो उनपे तुम्हारी इनायत नहीं है।
है महरूम इंसानियत आदमी से,
कि अब आदमी से मुहब्बत नहीं है।
शिकायत तुम्हारी कहाँ लेके जाएँ ,
कि तुमसे बड़ी तो अदालत नहीं है ।
सदा रौशनी हो जो "दीया" जलेगी,
कि ये तीरगी दिल की फितरत नहीं है।
©दीप्ति सिंह 'दीया'
वाह बेहतरीन ग़ज़ल डियर 🙏🌺
जवाब देंहटाएंशानदार गजल 🙏
जवाब देंहटाएंबेहद उम्दा ग़ज़ल👌
जवाब देंहटाएंलाजवाब ग़ज़ल मैम
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरत ग़ज़ल
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