ग़ज़ल ©गुंजित जैन
मुहब्बत का ग़मगीन अंजाम करके,
अधूरी मिरी हर सहर-शाम करके।
वफ़ा की हवा अब महकती नहीं है,
शज़र जा चुका ख़ल्क़ बेनाम करके।
गया छोड़कर यूँ अकेला मुझे वो,
मिरे नाम हर एक इल्ज़ाम करके।
जहां में कमाई रक़म खूब उसने,
मुझे रोज़ महफ़िल में नीलाम करके।
तलाशे उसी को ज़माने में गुंजित,
मगर नाम अपना यूँ गुमनाम करके।
©गुंजित जैन
बहुत ही खूबसूरत ग़ज़ल
जवाब देंहटाएंसादर आभार, नमन।
हटाएंसादर आभार लेखनी, नमन।
जवाब देंहटाएंबेहद खूबसूरत भावपूर्ण गज़ल 💐💐💐
जवाब देंहटाएंसादर आभार मैम🙏
हटाएंBahut sundar gazal👌🙏
जवाब देंहटाएंबेहद शुक्रिया भाई जी🙏
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