सूर्य ©सौम्या शर्मा
सूर्य रक्तिम लालिमा का,
खिल उठा देखो गगन में ।
नित्य अँधियारी निशा में,
अनवरत श्रमदान करता ।
शांत रहकर वह निरन्तर,
लक्ष्य हित संधान करता।
आज देखो जगमगाता,
वह ज्वलित हो निज अगन में ।
सौम्य पग को कंटकों ने ,
रक्तरंजित कर दिया था ।
किंतु था चट्टान सा वह,
पूर्ण प्रण उसने किया था।
है असम्भव कार्य सम्भव,
यदि पिपासा हो लगन में ।
थी लगन उसकी अनोखी,
यह स्वयं उसने किया था।
लक्ष्य हित तन-मन समर्पित ,
लक्ष्य हित जीवन जिया था ।
यज्ञ जीवन को समझकर,
प्राण अर्पित हो हवन में ।
आज देखो खिलखिलाता,
तेज से चमका सुआनन ।
स्वेद जिसको शुष्क करते,
कर द्रवित सकते न पाहन!
वह नहीं रोता नियति पर ,
जो नहीं सोता भवन में ।
सूर्य रक्तिम लालिमा का!
खिल उठा देखो गगन में!
©सौम्या शर्मा
सुंदर शब्दों से सुसज्जित अत्यंत उत्कृष्ट एवं भावपूर्ण रचना 👏👏👏❤❤❤💐💐💐
जवाब देंहटाएंअति सुंदर एवं संवेदनशील सृजन 💐💐💐
जवाब देंहटाएंबहुत प्यारा, प्रेरक गीत.... नमन है❣️❣️❣️
जवाब देंहटाएंBahut Sundar Geet👌👌
जवाब देंहटाएं