गीतिका ©विपिन बहार
जीवन मे तूफान बहुत है ।
जीने में नुकसान बहुत है ।।
सब दिखते बरसाती मेढक ।
कहने को इंसान बहुत है ।।
पीड़ा,आसूँ, चाहत,धोखा ।
मरने का सामान बहुत है ।।
भूख,गरीबी खालीपन की ।
आपस मे पहचान बहुत है ।।
खुद को समझे खुदा सरीखा ।
मानव को अभिमान बहुत है ।।
आओ बहनों रौशन कर दो ।
घर मेरा सुनसान बहुत है ।।
कौन सुनेगा भूखें मन की ।
वैसे तो दीवान बहुत है ।।
©विपिन बहार
सटीक एवं प्रभावशाली रचना 💐💐💐
जवाब देंहटाएंजी धन्यवाद आपका👏👏
हटाएंबहुत खूब भईया जी🙏🙏
जवाब देंहटाएंजी आभार आपका👏👏
हटाएंजी सादर आभार भाई जी👏👏
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