भुखमरी ©विपिन बहार

नून रोटी भी नही अधिकार में ।

घास खाती जिंदगी परिवार में ।।


बैठ कलुआ ज्ञान अब यों झोंकता ।

श्वान जैसे बेसबब वह भौंकता ।।

दाल-चावल जो धरा पर है पड़े ।

दीन अब वह भूख वश यों घोटता ।।


मौत दिखती भूख के आकार में ।

घास खाती जिंदगी परिवार में ।।


दो टका भी तो नही इस हाथ हैं ।

दर्द की रेखा उभरती माथ है ।।

ना वसन है,ना जतन ना चादरें ।

शीत में बस कँपकपी ही साथ है ।।


नींद रोती दीन के किरदार में ।

घास खाती जिंदगी परिवार में ।।


दीनता यों वेदना से जा लड़ी ।

जिंदगी किस राह पर आकर खड़ी ।।

भुखमरी की क्या सुनाऊँ दास्ताँ ।

आँसुओं की दाल कुकर में पड़ी ।।


दर्द,आसूँ ही मिले आहार में ।

घास खाती जिंदगी परिवार में ।।

  © विपिन"बहार"


टिप्पणियाँ

  1. अत्यंत संवेदनशील एवं मार्मिक सृजन 💐💐

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  2. अत्यंत हृदयस्पर्शी सृजन 👏👏👏💐💐

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