शराबी ©विपिन बहार
सड़क पर किनारे मचलता शराबी ।
बिना बात के अब उछलता शराबी ।।
किसी की नही है उसे फिक्र अब तो ।
कदम ही कदम पर बदलता शराबी ।।
गमो को उड़ाया नशे में मिलाकर ।
गमो के सहारे निखरता शराबी ।।
पता ही नही मिल रहा है निलय का ।
इधर से उधर अब भटकता शराबी ।।
करे पाँव डगमग अरे यार डगमग ।
यहाँ से वहाँ जब गुजरता शराबी ।।
टिका कौन हैं अब भला यार आगे ।
खुदी को बड़ा अब समझता शराबी ।।
सभी चुप रहे बस वही बोलता है ।
जरा भी नही अब ठहरता शराबी ।।
गजल-गीत गाने लगा यूँ सुहाने ।
नदी की लहर सा बहकता शराबी ।।
© विपिन बहार
आभार आपका👏👏
जवाब देंहटाएंबहुत खूब👌💐
जवाब देंहटाएंजी बेहद शुक्रिया आपका💐
हटाएंउम्दा👌
जवाब देंहटाएंजी बेहद शुक्रिया आपका💐
हटाएंक्या बात है बहुत खूब गज़ल 👌👌👏👏
जवाब देंहटाएंजी बेहद शुक्रिया आपका💐
हटाएंबहुत सुन्दर 👌👏
जवाब देंहटाएंबहुत खूब 👌🏼🙏🏻
जवाब देंहटाएंजी बेहद शुक्रिया आपका💐
हटाएंबहुत खूब 💐
जवाब देंहटाएंजी बेहद शुक्रिया आपका💐
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