कविता- शिव विवाह ©अंजलि

नमन, माँ शारदे

नमन, लेखनी


महिना है फागुन का,

दिन तेरस का आये

बन वर पक्ष के अध्यक्ष

नारद विवाह का न्यौता देने जाए।


पंडित बने है ब्रह्मा,

विष्णु कैलाश सजाएं,

भस्म लगाकर तन पर

भोले गौरी ब्याहने जाए।


मुस्कुरा रहा शीश पर चंदा,

जटाओं में गंगा नाचे गाये,

पुष्प से सजा है नन्दी

वासुकी हर्ष मनाए।


चंद्राणी, ब्रह्माणी बन बहनें,

रीति रिवाज रही निभाए,

भूत प्रेत देवता दानव,

बारात लिए सजाए।


नाच रहे है बाराती,

गण डमरू रहे बजाए,

होकर नंदी पर सवार,

शिव शक्ति ब्यहाने जाए।


पहुंच गई बारात गौरी द्वार,

नारद संदेश दिया पहुंचाए,

उत्साहित गौरी की सखियां,

गौरी का दूल्हा देखन आए।


देखकर शंभू की काया,

सखियां गई घबराएं,

जाकर राजा रानी को

सारा प्रसंग रही सुनाए।


भाई मैनक द्वार खड़ा,

शिव स्वागत की विधि कराए,

पहुंच अन्तर्यामी गौरी की नगरी,

गौरी को कैलाश ले जाने आए।


मैना रानी महादेव को

देखने की इच्छा जताए,

देखने को शिव की काया,

द्वार की ओर कदम बढ़ाए।


धरकर विराट सा कुरूप,

प्रभु मैना सबक सिखाए,

करे रानी भोले की निंदा,

नारद शिव महिमा गाये।


बन गए भोले तेजस्वी युवक,

मुकुट लिया सर पर सजाए,

संसार बनाने वाले,

खुद का संसार बसाने आए।


दूर कर दुविधा मैना की,

शंकर मंडप पर है जाए,

ब्रह्मा बैठे इंतज़ार में,

विष्णु मंडप रहे सजाए।


विराजे है शंकर मंडप में,

पंडित विधि रहे कराए,

बैठे गौरी इंतज़ार में

भोले मंद मंद मुस्काए।


पंडित पढ़े है मंत्र,

कन्या रहे बुलाए

लाल जोड़े सजी गौरी को

महेश्वर ब्याहने आए।


शिव शक्ति के हुए फेरे

देवता पुष्प बरसाए,

हुई बरसात खुशियों की 

पंडित कन्यादान कराए।


जगतमाता बनी है गौरी,

गण सारे जयकार लगाए,

प्रेम है महके कैलाश में,

परमेश्वर माता को ब्याहकर आए।


©अंजलि चोपड़ा




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