कविता- प्रश्न पत्र ही लीक हो गए ©रजनीश सोनी

नमन, माँ शारदे

नमन, लेखनी 



लद्धड़ प्रतिभागी कितने निर्भीक हो गये।

भ्रष्टाचार  चरम  पर  है  तस्दीक हो गये।। 


हुईं  रिक्तियाँ भरने की  घोषणा  प्रचारित, 

जगा भरोसा जब चुनाव नजदीक हो गये।


प्रश्न पत्र  अब बिकें  माल दे  हुई  खरीदी, 

जिनने लिये खरीद बड़े रमणीक हो गये। 


जैसे  तैसे  आया समय  परीक्षा का जब, 

पता चला की  प्रश्न पत्र ही लीक हो गये।


भर्ती बनी छलावा धन श्रम समय गँवाया, 

खाये पान दलाल  प्रत्यासी पीक हो गये। 


छीछा-लेदर हुयी  जांँच फिर लीपा-पोती, 

अफसर-शाही  नेता कई  शरीक हो गये।


अरबों का नुकसान हताश हुये प्रतिभागी, 

'नेह' न लज्जा लगे लाख तहरीक हो गये। 


©रजनीश सोनी "नेह"


टिप्पणियाँ

एक टिप्पणी भेजें

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

कविता- ग़म तेरे आने का ©सम्प्रीति

ग़ज़ल ©अंजलि

ग़ज़ल ©गुंजित जैन

पञ्च-चामर छंद- श्रमिक ©संजीव शुक्ला 'रिक्त'