ग़ज़ल ©परमानंद भट्ट

 नमन, माँ शारदे

नमन, लेखनी


किसी का दिल नहीं मिलता, किसी से दिल नहीं मिलता,

मुक्कमल  इस जहां में है बहुत मुश्किल नहीं मिलता ।


नज़र बस नुक़्स ही आते तुम्हें  किरदार  में सबके,

भरी दुनिया में तुमको  क्यूँ कोई काबिल नहीं मिलता।


उसे हम किस तरह अपना समझ कर पास बैठाते,

हमारे दर्द में तो वो कभी शामिल नहीं मिलता।


 कहाँ हम ढूँढने जाते ख़ुशी  के अस्ल  क़ातिल को,

हमें खुद से बड़ा कोई यहाँ क़ातिल नहीं मिलता।


जगी है भोर तक आँखें किसी की याद में उसकी ,

वगरना  शख़्स वो यूँ नींद से बोझिल नहीं मिलता।


जिसे  पतवार से धोखा मिला उस नाव को यारो,

हवाएँ साथ में होते हुए साहिल नहीं मिलता।


'परम' आनन्द पाने के लिए एकांत में बैठो ,

कभी भी भीड़ में या ये भरी महफ़िल नहीं मिलता।


©परमानन्द भट्ट

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