गीत- नव्यानुराग ©सूर्यम मिश्र
नमन, माँ शारदे
नमन लेखनी
कल्पना मौन की कल्पना रह गई,
कल्पना कल्प की वेदना पी गई ।
उँगलियों को कलम ने सहारा दिया,
मौन विस्मृत हुआ,कल्पना जी गई।।
मुक्ति मिलती गई चित्त के द्वंद्व से।
तीव्र होते गए भाव सब मंद से।
प्राण में प्रीति की बाढ़ सी आ गई।
गूथते जब गए भाव सब छंद से।
भावमाला महारम्य मोहक बनी।
शब्दसागर से जब सीपिजा ली गई।।
प्रेम को जो हुआ प्रेम से प्रेम तब।
खुल गए रास्ते जल पड़े दीप सब।
प्राण में सम्मिलित हो गईं शुद्धता।
प्रेम के आवरण से ढका चित्त जब।
चक्षुओं की प्रखरता सहज बढ़ गई।
जैसे तिमिरों में घोली प्रभाती गई।।
नित्य नवतन दिया राग के भाग को
हंसरूपी किया चित्त के काग को
साधना साध कर साधु मन हो गया
मानमंडित किया नव्य अनुराग को
प्रेम की बस क्षुदा छा गई रोम पर
भाव बन-बन के उर में समाती गई
©सूर्यम मिश्र
अत्यंत सुंदर गीत 🙏🍃
जवाब देंहटाएंसदर धन्यवाद ✨😊🙏
हटाएंसुंदर ❤
जवाब देंहटाएंसादर धन्यवाद 😊🙏
हटाएंमनमोहक ❤️
जवाब देंहटाएंधन्यवाद भैया 😊🙏
हटाएंबहुत सुंदर गीत💐
जवाब देंहटाएंविनम्र आभार भैया 😊🙏
हटाएंवाह , बहुत खूब
जवाब देंहटाएंसादर आभार भैया 😊🙏
हटाएंअति सुंदर एवं भावपूर्ण गीत सृजन 💐
जवाब देंहटाएंविनम्र आभार मैम 😊🙏
हटाएंअप्रतिम रचना 👌👌👏👏
जवाब देंहटाएंसादर आभार भैया 😊🙏
हटाएंबहुत बहुत सुन्दर गीत भाई👌 💕
जवाब देंहटाएंखूब खूब आभार भैया 😊🙏
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