दोहे- मधुमास ©परमानन्द भट्ट

नमन, माँ शारदे

नमन, लेखनी



आस रखें मन में सदा, अडिग रखें विश्वास।

हर पतझड़ के बाद में, आता है मधुमास।।


मौसम यह मधुमास का, आया तेरे द्वार।

घूंघट  के पट, खोलकर, आज लुटा दे प्यार।।


मौसम यह मधुमास का, मुश्किल मिलता यार।

आओ जी भर लूट ले, खुशबू का संसार।।


उसके मन मधुमास है, जिसके मन में नेह।

खुशबू यह बसती मिली, हमें प्रेम के गेह।।


मघुघट यह मधुमास में, छलक रहा दिन रैन।

विरहा को करता सदा, यह मौसम बेचैन।।


महक रहे मधुमास में, मन के देश गुलाब।

रात दिवस आते हमें, बस खुशबू  के ख्वाब।।


करने दो मधुमास में, मन से मन की बात।

जागे जागे काटनी, हमको प्यारी रात।।


कोष लुटाकर गंध का, हंसते रहते फूल।

कहते संचय भाव ही, सारे दुख का मूल।।


मेरे मन मधुमास था, मन उसके पतझार।

कैसे करता प्रेम को, वह दिल से स्वीकार।।


मत कर तू मधुमास की, बीत गयी वह बात।

बार बार मिलती नहीं, वह मनमोहक रात।।


मादक यह मधुमास तो, जीवन में दिन चार।

नहीं हमेशा के लिए, मिले महकती ड़ार।।


मधुकर यह मधुमास में, रैन दिवस बौराय।

इस लोभी को गंध का, संग निरंतर भाय।।


आता है मधुमास में, वह मिलने को रात।

पर दिन में करता नही, खुलकर के वह बात।।


आया है मधुमास यह, मान जरा मनुहार।

लो मैने अब मान ली, प्रियतम अपनी हार।।


साथ रहे मधुमास में,फूल और ये खार।

पर दोनों के बीच में, नहीं पनपता प्यार।।


©परमानन्द भट्ट

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