कहाँ है एंकात ©रेखा खन्ना
नमन लेखनी 🙏🏻
मरघट के आंगन में मौत नाचती हैं
क्रंदन रूंदन की थाप पर थिरकती है
रात की शाँत लहरों में राख ठंडी होती है
दिन के उजालों में जीस्त सुकून खोती है।
जीवन के शोर की आवाज़े दब गई है
जिम्मेदारियों के अनदेखे बोझ के नीचे
एंकात में मन जीता है यां समय की माँग है
सुकून-औ-करार की चाहत में पल-पल जलता बुझता है।
कहाँ है एंकात, मरघट में या जीवित संसार में
एहसासों की उथल-पुथल में या मन मारने में
तब्दीलियों में यां स्थिरता में ठहर जाने में
कुछ कर गुजरने के जोश में यां हालात स्वीकारने में।
जीवन की धारा को बहते पानी की तरह चलना है
कभी तेज़ लहरों सा शोर करते हुए कभी शांत हो कर के
जन्म से मृत्यु तक का सफ़र तय होना है
कभी किश्तों में मर कर के कभी खुशियों को जीते हुए।
जिंदगी सिर्फ जिंदा जीस्त का नाम नहीं है
रूह को भी खिलखिलाते हुए दिखना होगा
चाहे नकली आवरण मुख पर लगाए चाहे सचे भाव दिखा कर
मरघट चाहे कितना भी शांत दिखता है
कभी मरघट में दो घड़ी अकेले बैठ कर महसूस करना
वहाँ दिल दहला देने वाली हृदय विदारक चीत्कारों को अभयदान मिला हुआ है।
©रेखा खन्ना
गहन भावपूर्ण रचना
जवाब देंहटाएंअत्यंत भावपूर्ण एवं हृदयस्पर्शी रचना 💐🙏🏼
जवाब देंहटाएंबहुत गहरे भाव। हृदयस्पर्शी रचना
जवाब देंहटाएंअत्यंत गूढ़।
जवाब देंहटाएंभावपूर्ण 💐
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