कविता-पुष्प की व्यथा ©संजीव शुक्ला 'रिक्त'
नमन, माँ शारदे
नमन, लेखनी
बीज नष्ट कर दो कितने,
पौधे कितने निर्मूल करो ।
नव पराग परिमल अंकुर के ,
उन्मूलन की भूल करो ।
पुष्प लताओं की जड़ काटो ,
या अबोध कलिका नोचो।
निश्छल निरपराध कलियों की,
पीड़ा रंच न तुम सोचो ।
फूलों को रौंदो कोमल,
कलियों पर अत्याचार करो ।
कुत्सित चित में पुष्प विरोधी ,
पैदा नए विकार करो ।
कर लो यत्न अनेक ,सुमन का ,
सौरभ का न अंत होगा ।
मुस्काएंगीं कलियां ,फूलों का,
खिलता बसंत होगा ।
©संजीव शुक्ला 'रिक्त'
कर लो यत्न अनेक, सुमन का,
जवाब देंहटाएंसौरभ का न अंत होगा,
मुस्काएंगी कलियां, फूलों का खिलता बसंत होगा...
अत्यंत सुंदर, सकारात्मक संदेश देती कविता सर।🙏
अत्यंत उत्कृष्ट सृजन श्रीमान, नमन है 🙏
जवाब देंहटाएंअनुपम-अप्रतिम सृजन आदरणीय 👏👏🙏
जवाब देंहटाएंअत्यंत भावपूर्ण एवं संदेशप्रद कविता भाई
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