गीत- बाबा फिर से आओ ना! ©सौम्या शर्मा

नमन, माँ शारदे

नमन, लेखनी



कितना विचलित जनमानस है,

बाबा फिर से आओ ना!

कर दो मानस का गायन भी,

फिर से अलख जगाओ ना।


धूल धूसरित गरिमा सब की,

सब ही हैं पथभ्रष्ट हुए,

पशुता मानवता में पसरी,

जीव जंतु भी नष्ट हुए,

आ जाओ ना फिर से बाबा,

रामचरित फिर गाओ ना,

कितना विचलित जनमानस है,

बाबा फिर से आओ ना!


त्राहिमाम करती है प्रकृति भी,

जीवन सबके अस्त-व्यस्त हैं,

विष फैला संबंधों में ‌भी,

लोलुपता के वरदहस्त हैं,

देख दुर्दशा कलियुग की ,

अब कृपादृष्टि बरसाओ ना,

कितना विचलित जनमानस है,

बाबा फिर से आओ ना!


मानस रखी घरों में लेकिन,

हाथ न कोई लगाता है,

राक्षस कलि का नयी पौध को,

भांति-भांति भरमाता है,

कैसे हो कल्याण मनुज का,

आकर फिर बतलाओ ना,

कितना विचलित जनमानस है,

बाबा फिर से आओ ना!

©सौम्या शर्मा 

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