गीत- बदला है ©परमानंद भट्ट

भूख गरीबी बदहाली का काला  मंज़र बदला है,

मौसम सचमुच बदल गया या सिर्फ़ कलैण्ड़र बदला है।


पाँच वर्ष में सत्ताओं के ताज बदलते देखें है,

और साथ में साजिंदे सब साज बदलते देखे हैं,

बात-बात पर गिरगिट जैसे रूप  बदलते लोग यहाँ,

धन बल गुंडाबल करता है सत्ता का उपयोग यहाँ,

अफ़सर, नेता बाबू वो ही, केवल दफ़्तर बदला है,

मौसम सचमुच बदल गया या सिर्फ़ कलैण्डर बदला है।


दीवारों पर रंग-बिरंगे आप कलैण्डर टांँग रहे,

बुनियादी कुछ प्रश्न अभी भी सब से उत्तर माँग रहे,

साल बदलते जाते हैं पर चाल बदल कब पाए हम,

दीवारों पर मकड़ी वाले जाल बदल कब पाए हम,

ध्यान रहे यह उस क़ातिल का केवल खंजर बदला है,

मौसम सचमुच बदल गया या सिर्फ़ कलैण्डर बदला है।


बदलावों की अमर कहानी, लिखने का अवसर आया,

नये साल का नया नवेला,यह सूरज घर घर आया,

विश्व-जयी भारत का परचम, दुनिया में फहराना है,

नये साल में सकल विश्व को, जय जय भारत गाना है,

वही मनुज लाता परिवर्तन, वो जो अंदर बदला है,

मौसम सचमुच बदल गया या , सिर्फ़ कलैण्डर बदला है।


©परमानन्द भट्ट

टिप्पणियाँ

  1. वही मनुज लाता परिवर्तन, वो जो अंदर बदला है🙏अत्यंत सार्थक गीत सर🙏

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  2. अत्यंत सटीक एवं प्रभावशाली गीत 💐🙏🏼

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