रघुनंदन ©सौम्या शर्मा
मर्यादा को जब भी समझा,
होते हैं परिभाषित राम।
नगर अयोध्या के जन-जन के,
मन में सहज सुवासित राम!
लेशमात्र संदेह न मन में,
मुस्काते वन जाते राम।
पराकाष्ठा मूल्यों की हैं,
उत्तम तभी कहाते राम।
वानर,भालू,की सेना ले,
सकल विश्व के नायक राम।
केवट को उतराई देते।
समता के परिचायक राम।
राम वही जो मां शबरी के,
झूठे बेर प्रेम से खाते।
राम वही जो भ्राता की मूर्च्छा,
पर विह्वल अश्रु बहाते।
मानवता के केन्द्र बिन्दु हैं,
हनुमत हृदय सुशोभित राम।
उच्चकोटि आदर्श जगत में,
करते हैं स्थापित राम।
©सौम्या शर्मा
उच्च कोटि आदर्श जगत में,
जवाब देंहटाएंकरते हैं स्थापित राम।.....बहुत सुंदर, सार्थक सृजन बेटा
अद्भुत रचना maam
जवाब देंहटाएंजय श्री राम 🙏
जय श्री राम, अत्यंत सटीक, मनहर कविता🙏
जवाब देंहटाएंअति उत्तम एवं सार्थक सृजन 💐
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