गीत ©ऋतिका "ऋतु"
नमन,माँ शारदे।
नमन,लेखनी।
पुनश्च वन्य हो चले सभी किवाड़ भूल में!
अतिक्रमण हुआ सुनो कि सावधान हो सभी!
विरोधवत विपन्न वन न आक्रमण करे कभी।
अनेक शाख पालता कपाट काट काँख में,
हरीतिमा लटों समेत झाँक-झाँक आँख में
उलीचती गई अशेष अश्रुकुंड मूल में।
पुनश्च वन्य हो चले सभी किवाड़ भूल में!
अधीन जो अधीनता समर्थ की न भूलता,
कहो कि भीत से लगा-बँधा सहर्ष फूलता?
कटा न जो कुठार से,मरा नहीं प्रहार से
विटप वही हठात् चाहता प्रवेश द्वार से।
धराशयी किए धुरीण पट धकेल धूल में।
पुनश्च वन्य हो चले सभी किवाड़ भूल में!
निमेष में निकास नग्नता न खोल दे कहीं।
डरो!डरो!मलीन मौन 'क्रांति' बोल दे कहीं।
कहीं कुठार काठ का ललाट लौह चीर दे,
न भूल ही सको कभी वही विनष्ट पीर दे।
लखो अकाल काल ही प्रसून,पत्र,शूल में।
पुनश्च वन्य हो चले सभी किवाड़ भूल में!
©ऋतिका 'ऋतु'
सुंदर पंचचामर छंद सृजन।
जवाब देंहटाएंउत्कृष्ट छंद सृजन, नमनीय 👏🙏
जवाब देंहटाएंअनुपम, अप्रतिम और उत्कृष्ट गीत ❤️❤️👏👏
जवाब देंहटाएंअत्यंत संवेदनशील एवं प्रभावशाली छंद बद्ध गीत 💐
जवाब देंहटाएंसुंदर, भावपूर्ण गीत।
जवाब देंहटाएंलय के साथ लिखा गया यह गीत बेहद सुंदर है 💐💐!
जवाब देंहटाएंवाह बहुत सुंदर छंद बद्ध गीत💐💐
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर गीत लिखा आपने लाडो 🌺🥰
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत गीत maam
जवाब देंहटाएंनमन 🙏🙏
मनहर...💐
जवाब देंहटाएं