लघुकथा-नन्हा परिंदा ©संजीव शुक्ला 'रिक्त'

नमन, माँ शारदे

नमन, लेखनी


एक चिड़िया का जोड़ा.....एक दिन दोनों मिलकर  बेहद खुश एक छोटा सा घोंसला बनाने लगे ..चिड़िया चोंच में दबा के तिनके बीन के लाती और चिड़ा खूबसूरती से उन तिनकों से घोंसला बनाता .घोंसला तैयार हुआ ..कुछ दिनों बाद एक नन्हा परिंदा घोंसले में आ गया ..जोड़े की दुनिया नन्हे परिंदे की नटखट ची ची ..की आवाज़ों से आबाद थी ..दोनों रोज सुबह दाने की तलाश में दूर उड़ जाते .और शाम को वापस तेज़ी से पंख फड़फड़ाते वापस लौट आते ..अक्सर खाली पेट पर दोनों की चोंच में कुछ दाने नन्हे के लिए जरूर दबे होते ..लौट कर नन्हे को देखते ही थकन भूख सब खो जाती .बारी बारी दोनों अपनी चोंच में छुपा के रखे  दाने  नन्हे की नन्ही चोंच में डालते ..

कुछ दिनों बाद नन्हे परिंदे के रूपहले पंख आने लगे ..दोनों उसके पंखो को बढ़ता देख बेहद खुश थे .नन्हा धीरे धीरे फुदकता हुआ घोंसले के बाहर आ जाता ..चलने की कोशिश में लड़खड़ाता तो दोनों का कलेजा मुँह तक आ जाता ..दोनों झपट कर नन्हे को संभालते ..अजीब कश्मकश थी .नन्हे को उड़ता भी जल्द  से जल्द देखना चाहते थे और मन में कही उसे अकेले उड़ने देने से डर भी ..खैर ..वक्त कब रुकता है...

     धीरे धीरे नन्हा परिंदा बड़ा होने लगा ..और इसी के साथ बढ़ने लगी उसकी खुले आसमान में अकेले उड़ने की ज़िद ..कभी माँ की गोदी से कूद जाता कभी फुदकता हुआ बाबा के पीछे निकल पड़ता ..और फिर वो घड़ी आ गयी जब चिड़िया और चिड़ा दोनों ने दिल पे पत्थर रखकर  नन्हे को खुले आसमान में अकेले उड़ने की इज़ाज़त दे दी ...नन्हा परिंदा बेहद खुश था ..फुदक फुदक कर अपने उड़ने के तरह तरह के हुनर माँ बाबा को दिखा कर उन्हें आश्वस्त  करने की कोशिशें कर रहा था ..उन्हें यकीन दिलाना चाहता था की वो बड़ा हो गया है और अकेले बिना माँ बाबा के वह खुले आसमान में उड़ना चाहता है .. बखूबी उड़ सकता है l चिड़िया और चिड़ा दोनों एक बहुत ऊँचे टीले पर नन्हे को ले गए ..लगातार उसे परवाज़ों के हुनर आसमान की तकलीफें दुश्मनो और उनसे निपटने बचाव के तरीके समझते हुए ..धड़कते दिल से नन्हे को अपनी ज़िंदगी की पहली उड़ान भरने का इशारा कर दिया ..नन्हा तो जैसे इसी पल के इंतज़ार में था ..

नन्हे ने पर खोले आत्मविश्वास और उत्साह में भरी मुस्कुराती नज़रे माँ बाबा पर डाली और ..अनंत आकाश में अपने जीवन की पहली छलांग .मार दी ..चिड़िया का कलेजा धक् से हुआ ..चिड़ा बारीकी से नन्हे की परवाज़ों के हुनर देख रहा था ..चिंता की परछाइयाँ चिड़े की  आंखों से कुछ कम हो चली थी ..और फिर नन्हे ने अचानक एक बेहद ऊँची उड़ान भर ली ..ऊपर ..और ऊपर ......माँ बाबा की उम्मीद से भी ऊपर ..और .दूर नीले आसमान में दूर निकल गया दोनों की नज़रो से ओझल ....आज भी दोनों उसी टीले पर बैठे आसमान के उसी हिस्से को तकते रहते हैं जिस जगह से उनका नन्हा अपनी पहली परवाज़ भर के अनंत आसमान को जीतने निकला है ..जब  सातों आसमान  फतह कर नन्हा वापस इसी रास्ते से आएगा ..और खुदका बेहद खूबसूरत घोंसला बनाएगा ..माँ बाबा की नज़रों के सामने होगा हमेशा .......

©संजीव शुक्ला 'रिक्त'

टिप्पणियाँ

एक टिप्पणी भेजें

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

कविता- ग़म तेरे आने का ©सम्प्रीति

ग़ज़ल ©अंजलि

ग़ज़ल ©गुंजित जैन

पञ्च-चामर छंद- श्रमिक ©संजीव शुक्ला 'रिक्त'