लिखूँ ©मीनाक्षी
उठाती हूँ जब भी कलम, सोचती हूँ क्या मैं लिखूँ
बीत गयी जो जिंदगी उसकी कहानी लिखूँ
या चल रही जो जिंदगी उसकी रवानी लिखूँ
ग़म के कुछ अनसुलझे से राज लिखूँ
या खूबसूरत लम्हों के कुछ साज लिखूँ
दूसरों की जिंदगी का अफ़साना लिखूँ
या अपनी ही जिंदगी का कोई फ़साना लिखूँ
बिछड गए जो जिंदगी में अपने उनकी निशानी लिखूँ
या हो गए जो पराये से भी अपने उनकी कहानी लिखूँ
सोचते सोचते ही यह बीत जाती है हर शाम क्या मैं लिखूँ
ले आती है सुबह फिर नया पैगाम कि कुछ नया मैं लिखूँ
©मीनाक्षी
बेहद खूबसूरत बेहद भावपूर्ण 💐
जवाब देंहटाएंलिखने को बड़े बेहतरीन ढंग से लिखा है आपने, 👏
जवाब देंहटाएंसुंदर सार्थक रचना मीनाक्षी जी😇🌹🌹
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर एवं भावपूर्ण
जवाब देंहटाएंअत्यंत सुंदर💐
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